11.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 11 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२९३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष  चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 11 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२९३ वां* सार -संक्षेप


जहां जिस ठौर जैसे दौर में भी हों वहीं जागें 

कि अपने इष्ट से वरदान बस केवल यही मांगें 

हमारा तन सदा साथी रहे मन शांत संयत हो 

चुनौती कोइ भी हो हम न उससे भीत हो भागें

यहां जागने का अर्थ अत्यन्त गहन गम्भीर है मात्र नेत्र खोलना ही जागना नहीं है किस प्रकार की समझदारी किस स्थान पर कैसे व्यक्त की जाए यह जागरण है

यदि हम स्वस्थ और  प्रसन्न रहेंगे तो चुनौतियों से जूझ भी लेंगे 


आचार्य जी कहते हैं कि हममें से किसी को भी हीनभावना से ग्रस्त नहीं होना चाहिए हम सबमें शक्ति है तत्त्व है हमें विवेचनपूर्वक इसे स्वीकारते हुए निराशा हताशा से दूर रहना चाहिए  अपनों के परिवेश का भी हमें ध्यान रखना चाहिए 


बिना भ्रमित हुए अपनी पूर्ण क्षमता के साथ जिस किसी को भी सहायता की आवश्यकता हो अवश्य करें

अपनी क्षमताओं को पहचानकर अधिक से अधिक कामों को करें आत्म की अनुभूति भी करें  हम देशद्रोही तत्त्वों से सावधान रहें  अपने देश अपनी संस्कृति अपने विचारों के उत्थान में जुटे पुरोहित के रूप में अपनी भूमिका का स्मरण रखें और संगठित रहें 

हम उस विद्यालय के छात्र रहे हैं जो महापुरुषों की एक लम्बी सूची में जगमगाते आदर्श पुरुष पं दीनदयाल जी की स्मृति में बना ऐसे में उनके सद्गुण हमारे भीतर आने ही चाहिए उनमें अनेक सद्गुण थे और इतने सदगुणी व्यक्ति की ११ फरवरी १९६८ को दुष्टों द्वारा हुई हत्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संयुत या परिचित व्यक्तियों को महाशोक में ले डूबी

यह घटना आज भी हम राष्ट्र भक्तों को विचलित कर देती है 

आज राष्ट्र -भावना से संपृक्त होते हुए पूरा दिन शान्त गम्भीर रहते हुए बिताएं उनकी मूर्ति /चित्र पर पुष्पार्पण करें 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि पुुरुष सूक्त का प्रयोग विशेष पूजन के क्रम में किया जाता है। षोडशोपचार पूजन के एक- एक उपचार के साथ क्रमशः एक- एक मन्त्र बोला जाता है। जहाँ कहीं भी किसी देवशक्ति का पूजन विस्तार से करना हो, तो पुरुष सूक्त के मन्त्रों के साथ षोडशोपचार द्वारा पूजन करा दिया जाता है।जैसे 

 ॐ चन्द्रमा मनसो जातः   चक्षोः सूर्यो अजायत। श्रोताद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत॥


अर्थात्- विराट् पुरुष के मन से चन्द्रमा, नेत्रों से सूर्य, कानों से वायु एवं प्राण तथा मुख से अग्नि का प्राकट्य हुआ है।


मन चन्द्रमा की स्थितियों से उत्थित और हतोत्साहित होता है


 आचार्य जी ने भैया कुमार आनन्द अग्रवाल जी,भैया दीपाङ्कर वाजपेयी जी,भैया पवन जी, भैया अशोक जी का नाम क्यों लिया शाल वाला क्या प्रसंग था जानने के लिए सुनें