प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 12 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२९४ वां* सार -संक्षेप
परमात्मा की लीला के कारण ही संभव इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से आचार्य जी नित्य हमें उद्बोधित करते हैं वह प्रयास करते हैं कि हमें उत्साह ,विश्वास,आत्मशक्ति,संसार की समस्याओं से जूझने के लिए दिशा दृष्टि मिले हमारी अनुभूतियां अभिव्यक्तियों में परिवर्तित हों हम अविश्वास का तिमिर दूर करें वह मध्यम वर्ग के हम लोगों को परामर्श देते हैं कि शान्ति प्राप्त करने के लिए परमात्मा की शरण में जाएं क्योंकि सारी सृष्टि ही परमात्मा द्वारा रची गई है इसमें अतिशयोक्ति नहीं कि परमात्मा भीतर और बाहर सर्वत्र विद्यमान है
कठोपनिषद् में एक छंद है
एको वशी सर्वभूतान्तरात्मा एकं रूपं बहुधा यः करोति।
तमात्मस्थं येऽनुपश्यन्ति धीरास्तेषां सुखं शाश्वतं नेतरेषाम् ॥
समस्त प्राणियों के भीतर स्थित, शान्त एवं सबको वश में रखने वाला एकमेव 'आत्मा' एक ही रूप को भिन्न भिन्न प्रकार से रचता है जो धैर्यवान् पुरुष 'उस' का आत्मा में दर्पणवत् अनुदर्शन करते हैं उन्हें शाश्वत सुख प्राप्त होता है, इससे इतर अन्य व्यक्तियों को नहीं ।
गीता का एक अत्यंत प्रसिद्ध छंद है
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्।।2.45।।
वेद तीनों गुणों के कार्य का ही वर्णन करने वाले हैं
हे अर्जुन! तुम तीनों गुणों से रहित , द्वैत भाव से मुक्त , निरन्तर नित्य वस्तु परमात्मा में स्थित हो जाओ और योगक्षेम की इच्छा भी मत रखो साथ ही परमात्मपरायण हो जाओ
इसकी अनुभूति वाला ही ऋषि होता है किन्तु कभी कभी उसका ऋषित्व सांसारिकता में कुंठित हो जाता है जैसा ऋषि उद्दालक का हुआ
कठोपनिषद में एक कथा है कि उद्दालक ऋषि विश्वजित नामक यज्ञ कर रहे थे
विश्वजित का उल्लेख पौराणिक महाकाव्य महाभारत में भी हुआ है। महाभारत के अनुसार यह एक प्रकार के यज्ञ को कहा जाता है, जिसकी दक्षिणा में सर्वस्व दान कर देने का विधान है।
उद्दालक ऋषि को मोहग्रस्त देखकर उनके पुत्र नचिकेता ने कुछ ऐसा कहा जिससे उनके पिता क्रुद्ध हो गए
क्रुद्ध होकर उन्होंने सबसे प्रिय वस्तु के रूप में नचिकेता को यम को दान में दे दिया ( नचिकेता ने यमराज अर्थात् धर्मराज से ब्रह्मज्ञान प्राप्त किया )
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया
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