ज्ञान इतना विस्तृत है कि जीवात्मा और परमात्मा का नित्य सम्बन्ध होने पर भी हम परमात्मा को पहचान नहीं पाते...
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 13 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२९५ वां* सार -संक्षेप
आचार्य जी जो नित्य हमें सात्विक जीवन जीने की ओर उन्मुख करने का प्रयास करते हैं हम जिज्ञासुओं को अध्ययन स्वाध्याय और लेखन की ओर प्रेरित करते हैं हमें सुविस्तृत अथाह सनातन धर्म के वैशिष्ट्य से अवगत कराते हैं विद्या और अविद्या दोनों को जानने के लिए बढ़ावा देते हैं उसका उद्देश्य है कि हमें यह आत्मबोध हो कि हम केवल शरीर नहीं हैं हम इच्छाओं का पुञ्जीभूत रूप नहीं हैं हमें पता चले कि प्रकाश स्रोत, अन्तर्दृष्टि, अन्तर्ज्योति, ज्ञानचक्षु और तृतीय नेत्र आदि उपमाओं से विभूषित प्राचीन शिक्षा से वञ्चित कराकर हमें किस प्रकार की दूषित शिक्षा, जो न आत्मदर्शन कराने में सक्षम है न संसार का दर्शन कराने में उपयोगी, वह उपलब्ध करा दी गई कि हमने पाठ्यक्रम पढ़ा परीक्षा उत्तीर्ण की degree हासिल की नौकरी पा ली धन एकत्र कर सुखोपभोग विलासिता की वस्तुएं एकत्र लीं और इसी चक्र को भावी पीढ़ी को चलाने के लिए दे दिया और इससे हम आत्महीनता से ही ग्रसित हुए कल्याण नहीं हुआ क्या जीवन की यही परिभाषा है
*केवल प्राणों का परिरक्षण जीवन नहीं हुआ करता है*
*जीवन जीने को दुनिया में अनगिन सुख सुर साज चाहिए*.....
जीव की इच्छाओं का विस्तार अनन्त है इस प्रदर्शन से इतर आत्म का दर्शन है
ऋतं पिबन्तौ सुकृतस्य लोके गुहां प्रविष्टौ परमे परार्धे ।
छायातपौ ब्रह्मविदो वदन्ति पञ्चाग्नयो ये च त्रिणाचिकेताः ॥ १ ॥
जो व्यक्ति अपने पुण्य कर्मों का फल भोगते हैं, वे परब्रह्म के आसन की गुहा में स्थित रहते हैं, उन्हें ब्रह्मवेत्ता छाया व प्रकाश कहते हैं, तथा जो पांच अग्नियों को धारण करते हैं और जिन्होंने नचिकेता अग्नि को तीन बार प्रसन्न किया है।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने छाया प्रकाश अंधकार का सम्बन्ध बताया दीनदयाल जी के तीन दिन होने वाले बौद्धिक की चर्चा की चाणक्य के बारे में आचार्य जी ने क्या बताया नचिकेता का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें