ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 14 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२९६ वां* सार -संक्षेप
हमारे ऋषियों ने संसार की सांसारिकता वाले भाव को कम करने के लिए विचार चिन्तन मनन ध्यान अध्ययन स्वाध्याय योग सदाचार आदि उपाय बताए हैं
आज मानव जीवन इतना अस्त-व्यस्त हो गया है कि सदाचार की ओर उसका ध्यान ही नहीं जाता जब कि सदाचार मनुष्य के मन,कर्म और वचन की पावन धारा का वह सुन्दर समन्वय है, जहाँ पर मनुष्य मनुष्य के सम्बन्ध को ऋत रीति से जानता है और उस सम्बन्ध का नियमों के अनुकूल अनुपालन भी करता है आइये अस्त व्यस्त जीवन से बचाने वाले सदाचार को प्राप्त करने के लिए प्रवेश करें आज की वेला में
यह विविधताओं से भरा संसार सफलता के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता है सफलता हमें आनन्द देती है
संसार बहुत अद्भुत है और इस संसार के तत्त्वों से बना हमारा शरीर भी कम अद्भुत नहीं है उसकी अद्भुतता अवर्णनीय है
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा । पंच रचित अधि अधम शरीरा ॥
प्रतिदिन हम मरते हैं प्रतिदिन हम जीते हैं
ऐसे शरीरधारी मनुष्य हैं हम किन्तु हमें अपने मनुष्यत्व की अनुभूति होनी चाहिए तभी हमें मनुष्य होने का लाभ है
आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त बताया कि हनुमान जी हमारे भीतर यदि उपस्थित हो जाएं तो हमारा हर तरह से कल्याण होगा उनका प्रभाव अद्भुत है इसके लिए आचार्य जी ने एक प्रसंग बताया जिसमें विद्यालय में अनेक कुत्ते मर गए थे और हम लोगों की रक्षा हो गई थी
अपनों की मृत्यु कितना कष्ट पहुंचाती है इसके लिए आचार्य जी ने धन्ना भगत का प्रसंग बताया
धन्ना भगत अपने पुत्र की मृत्यु पर बहुत व्यथित हो गए थे उनकी ढपली की ताल नहीं बन पा रही थी
अपने लिए अपनों के लिए समाज के लिए युगभारती परिवार का विस्तार आवश्यक है
आचार्य जी ने भैया प्रवीण द्विवेदी जी का नाम क्यों लिया
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