16.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 16 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२९८ वां* सार -संक्षेप

 तुम्हारी उदासी उनको हँसाती है 

 और दुनिया के

सभी शिल्पियों को

 दुविधा में फँसाती है | 

उनका यही काम है

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प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 16 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२९८ वां* सार -संक्षेप

बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥

सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥4॥


सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई॥

बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं॥5॥

सत्संग के रूप में प्राप्त ये सदाचार संप्रेषण जिनमें प्रचुर मात्रा में तत्त्व मिलते हैं जिनसे सांसारिक और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है

 एक  ऐसा माध्यम  जिससे हमें समझ में आए कि हम अपनी इच्छाओं और अहंकार को छोड़कर स्वार्थ का परित्याग कर भगवान् के प्रति अपनी श्रद्धा और प्रेम व्यक्त करें 

 हमें उत्थित उत्साहित करने के लिए हमें सरलता से उपलब्ध हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए 

हम यदि मनुष्यत्व की अनुभूति करें तो  समझ में आयेगा कि  हमारे अंदर सबसे अधिक प्रबल तात्विक शक्ति का बोध 'भाव ' है 

इसी कारण हमें भाव को पूजना चाहिए

हम अनुभूति करें कि हम शिल्पकार हैं हम अपने प्रयास जारी रखें हमें आजीवन बनाने की धुन है हम उसे भूलें नहीं हम राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित के रूप में अपने कर्तव्य को करते रहें  जो दूसरों का सुख हर रहे हैं  विध्वंसकारी कृत्य कर रहे हैं उनसे सचेत रहें संगठित रहकर शक्ति पराक्रम की अनुभूति करें 

हम अपनी आत्मशक्ति को पहचानें जब हम अनुभूति करेंगे कि हम उसी अंशी के अंश हैं तो हम बड़े से बड़े काम कर सकते हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि जीवन की पद्धति को अद्भुत कौशल से प्रस्तुत करने वाले अनेक ग्रंथों से समृद्ध संस्कृत साहित्य में नाम के आगे श्री  क्यों लगाया जाता है जैसे श्रीमद्भगवद्गीता श्रीरामचरित मानस इसके लिए निम्नांकित श्लोक द्रष्टव्य है— देवं गुरुं गुरुस्थानं, क्षेत्रं क्षेत्राधिदेवताम्। सिद्धं सिद्धाधिकारांश्च, श्रीपूर्वं समुदीरयेत्॥

आचार्य जी ने यह भी बताया कि हम मनुष्य अकेले नहीं रह सकते हमें किसी न किसी का साथ चाहिए 

आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी, भैया विजय गर्ग जी का नाम क्यों लिया कल कौन सा सत्रान्त कार्यक्रम हुआ छत को न भूलने से क्या तात्पर्य है जानने के लिए सुनें