17.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 17 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२९९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 17 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२९९ वां* सार -संक्षेप

हारे मानस की आशा के रूप में परिलक्षित हो रहे, आनन्द की अनुभूति कराने में सक्षम कविता रूपी इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी का नित्य प्रयास रहता है कि उनके भावों को ग्रहण कर हम भारत की धरती में जन्मे  और ऋषियों चिन्तकों विचारकों विद्वानों विदुषियों वीराङ्गनाओं वीरों की बहुतायत वाली इस भूमि के रस से आप्लावित  राष्ट्र -भक्त यशस्वी,तपस्वी, सेवाधर्मी बनें  शक्ति पराक्रम की अनुभूति करें वसुधैव कुटुम्बकम् के भावों को ग्रहण करें, राम -कथा, कृष्ण -कथा को सुनकर शौर्य प्रमंडित अध्यात्म को जीवन में उतारें भूले भटके पंथी न बने रहें अपने गौरवशाली वास्तविक इतिहास को जानें पिछवाड़े से आए चोरों से सचेत रहें

सनातन धर्म की विशेषताओं को जानें  और ध्यान दें कि ऐसा न हो जाए कि 

घर घूर हो जाए भरपूर नूर की चाहत में

हम मात्र यह न समझें कि केवल अस्थि चर्म का गेह लिए एक निरीह मनुष्य हैं 

कविता रूपी नामरूपात्मक, क्षरणशील मरणधर्मा संसार को रचने वाले परमात्मा के मन में जब यह अनुभूति हुई कि वह  अकेला है और उसे आनन्द नहीं आ रहा है तो उसे इस एकाकीपन से निकलने की छटपटाहत हुई

एकोऽहं बहु स्याम 

और  फिर जो स्वर निकला वह उस परमात्मा की कविता का प्रथम छंद बना

 *ॐ* 

जिसका उच्चारण हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी है इसके उच्चारण से शरीर के सारे अंग परिपुष्ट हो जाते हैं इससे अवर्णनीय शक्ति विश्वास ऊर्जा की अनुभूति होती है 


परमात्म तत्व लेकर अवतरित हुए महर्षि वाल्मीकि द्वारा उच्चारित 

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥' प्रथम श्लोक के रूप में हमारे सामने है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी भैया समीर राय जी भैया सौरभ राय जी की चर्चा क्यों की सियाराम शरण का उल्लेख किस प्रसंग में हुआ  योगेश जी का नाम क्यों आया संसार पर संकट क्यों है क्या हम ही कल्कि हैं जानने के लिए सुनें