19.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 19 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३०१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 19 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३०१ वां* सार -संक्षेप


श्रवणायापि बहुभिर्यो न लभ्यः शृण्वन्तोऽपि बहवो यं न विद्युः।

आश्चर्यो वक्ता कुशलोऽस्य लब्धाश्चर्यो ज्ञाता कुशलानुशिष्टः ॥



वह (परमतत्त्व) जिसका श्रवण भी बहुतों के लिए दुर्लभ है सुनने वाले व्यक्तियों में से भी अनेक 'जिसे' जान नहीं पाते। 'उसका' ज्ञानपूर्वक कथन करने वाला व्यक्ति अथवा कुशलता से 'उसे' उपलब्ध करने वाला व्यक्ति होना एक आश्चर्यचकित करने वाला चमत्कार है

 तो जब ऐसा कोई मिल जाये ( जैसे आचार्य जी हमें उपलब्ध हैं) तो ऐसा श्रोता होना भी आश्चर्यपूर्ण है जो ज्ञानीजन से 'उसके' विषय में उपदेश ग्रहण करके भी 'ईश्वर' को जान सके। अनुभवकर्ता यदि पारगामी हो तो इसका बहुत प्रभाव होता है 


आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि किसी भी प्रकार की शुष्कता से इतर इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से हमें शक्ति, भक्ति, उत्साह, उमंग, चैतन्य, विचार और जीवन जीने का एक मंगलकारी आनन्द का स्वरूप जो हमारी कलाओं में व्यक्त होता है प्रदान हो जाए, आचार्य जी का सदाचार रूपी कवित्व अद्भुत है जो हमें यह भी बताता है कि नाम के रूप में विद्यमान विद्या के साथ रूपात्मक अविद्या भी महत्त्वपूर्ण है और इस अविद्या को मनोयोगपूर्वक पहचानने की नितान्त आवश्यकता है ताकि हमारा मन लगा रहे 

मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः

अर्थात् मन ही तो मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है

यदि पूजा भाव से हम इन सदाचार संप्रेषणों को सुनेंगे तो हमें अवर्णनीय लाभ पहुंचेगा


सबसे मुख्य है कि हमारा मन कहां लगता है और हमारी स्थूल या सूक्ष्म रुचियां क्या हैं जिसमें हमारी रुचि हो उसे पूजा भाव से करें जो काम करें उसमें आनन्द मिले

जैसा आनन्द तुलसीदास जी को भगवान् राम में मिला वो भगवान् राम में रम गए 

 शांतं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं, ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्‌, रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं, वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्‌ l 

आचार्य जी हमें सचेत करते हुए कहते हैं कि हम मार्गान्तरित न हों 

हम सार के साथ निष्ठुर संसार को भी समझें समाज में हम अपना व्यवहार सही रखें कटु वचन न बोलें हम संयमित भी बनें अपनी अपनी ज्योति जलाएं ताकि हमारे राष्ट्रभक्त समाज का अंधकार दूर हो उसे अपने वास्तविक इतिहास से परिचित कराएं सनातन धर्म के वैशिष्ट्य की जानकारी दें स्वयं के साथ समाज को भी शौर्य से प्रमंडित आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी के व्यवसाय की चर्चा क्यों की भैया प्रमेन्द्र जी का उल्लेख क्यों हुआ  प्रेमानन्द जी का प्रसंग क्यों आया जानने के लिए सुनें