प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष सप्तमी /अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 20 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३०२ वां* सार -संक्षेप
कल्किपुराण के प्रथम अध्याय में ,गरुडपुराण के ११७ वें अध्याय में ,श्रीमद्भागवतमहापुराण के १२ वें स्कंध के तीसरे अध्याय में और मानस के उत्तरकांड में कलियुग,जिसमें हम निवास कर रहे हैं,का यथार्थ किन्तु ऐसा भयानक वर्णन है जो हमें असहज कर देता है
कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रंथ।
दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ॥९७ क॥
कलियुग के पापों ने सारे धर्मों को ग्रस लिया, अच्छे ग्रंथ लुप्त हो गए,दुष्ट दम्भियों ने अपनी बुद्धि से कल्पना के द्वारा अनेक पंथ प्रकट कर दिए
एक उपनिषद है जिसमें कलियुग को पार करने का उपाय बताया गया है और वह है कलिसन्तरणोपनिषद जो वैष्णव शाखा के अन्तर्गत है। यह संस्कृत भाषा में लिखित है। इसके रचियता मध्यकालीन वैष्णव कवि है इस उपनिषद् में एक ही जप है
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ll
हम लोगों को हनुमान जी महाराज ने दिशा दी हम उनसे प्रेरित प्रभावित होकर संस्कारित हुए
हमारे अन्दर उतने विकार नहीं हैं जैसे अन्य में परिलक्षित होते हैं
हम अपना प्रकाश फैलाने में सक्षम है जिससे समाज जिसमें विश्वास घट गया है का अंधकार दूर हो सके
हम चार आयामों पर कार्य कर रहे हैं शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन और सुरक्षा
शिक्षा, जो मानव धर्म है,से मानव का उद्धार संभव है इससे उसके अंदर आत्मविश्वास जागता है
शिक्षा जो अब केवल कमाई का आधार बन गई है तो मुसीबतें खड़ी कर रही है इसी कारण अच्छी शिक्षा की नितान्त आवश्यकता है
अच्छी शिक्षा से मनुष्य में मनुष्यत्व आता है
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम अध्ययन स्वाध्याय लेखन की ओर उन्मुख हों एक दूसरे के संपर्क में रहें एक दूसरे का सुख दुःख पूछें इससे हमारे अन्दर एकोऽहं बहुस्याम का भाव आयेगा
इसके अतिरिक्त उन्मुक्त मुक्तक क्या है जानने के लिए सुनें