मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधीः काममोहितम्॥'
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष चतुर्थी /पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 2 फरवरी 2025 का भाव -यज्ञ रूपी सदाचार सम्प्रेषण
*१२८४ वां* सार -संक्षेप
कर्म से परिपूर्ण जीवन जीने वाले भावनासम्पन्न संत स्वभाव वाले आचार्य जी जिनके परिचय के लिए ये पंक्तियां उपयुक्त हैं
पथ के आवर्तों से थक कर, जो बैठ गया आधे पथ पर।
उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढ़ निश्चय।
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!
नित्य प्रयास करते हैं कि यज्ञभाव से रहने का प्रयास करने वाले हम लोगों के भीतर संयम स्वाध्याय श्रद्धा भक्ति विश्वास शक्ति शौर्य का एक पुंजीभूत स्वरूप जाग्रत हो
हमारी भारतीय संस्कृति भावमयी तत्त्वमयी सत्त्वमयी यज्ञमयी संस्कृति है
ध्यातव्य है शास्त्रोक्त वचनों से संपूर्ण वायुमंडल यज्ञमय हो जाता है
और
सर्वव्यापी परमात्मा भी यज्ञ (कर्तव्य-कर्म) में नित्य प्रतिष्ठित है।
हमें इसी यज्ञमयी संस्कृति का अनुसरण करना चाहिए
हमें आसक्ति को त्यागकर यज्ञ के निमित्त ही कर्म का सम्यक् आचरण करना चाहिए
यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।
भुञ्जते ते त्वघं ( भुञ्जते ते तु अघं ) पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।।3.13।।
यज्ञ के अवशिष्ट अन्न को ग्रहण करने वाले श्रेष्ठ पुरुष सारे पापों से मुक्त हो जाते हैं किन्तु जो उदरंभरि व्यक्ति केवल स्वयं के लिये ही पकाते हैं वे पापों का ही भक्षण करते हैं।।
हमारी आर्ष परम्परा अत्यन्त अद्भुत है इस परम्परा में ज्ञान का उद्भव काव्यमय है
भावों से उद्भूत भावक जनों को समर्पित की जाने वाली
कविता मन का विश्वास भाव की भाषा है
हारे मानस की आस प्राण परिभाषा है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने रोम के एक राजा की चर्चा क्यों की अटल जी ने कौन सी कविता दसवीं कक्षा में लिखी थी आज आचार्य जी सुबह जल्दी क्यों आ रहे हैं जानने के लिए सुनें