3.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 3 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२८५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 3 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२८५ वां* सार -संक्षेप

सनातन धर्म को मानने वाले भारतीय जीवनदर्शन में संपृक्त हम लोग परम संसारी व्यक्तियों से इतर सोच रखते हैं इस कारण  आनन्द की उपलब्धता चाहने वाले हम मात्र शरीर के इर्द गिर्द ही अपना चिन्तन न रख आत्मा 


( न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।


अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो

न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।2.20।।

 

 यह शरीरी न कभी जन्म लेता है और न मरता है तथा यह उत्पन्न होकर पुनः होने वाला नहीं है। यह जन्मरहित, नित्य निरन्तर रहने वाला, शाश्वत एवं अनादि है। शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता )

को भी पहचानने की क्षमता रखते हैं और विश्वासपूर्वक कहते हैं कि जो कुछ भी इस संसार में है, वह सब ईश्वर का है 

आनन्द के लिए बाधाओं को काटना अपना उद्देश्य होना चाहिए यूं तो संपूर्ण संसार ही कुरुक्षेत्र है युद्ध चल रहा है संघर्ष हो रहे हैं 

संकट विकट प्रच्छन्न रूपों में चतुर्दिक छा रहा, 

सुविधापसंदों को सिवा सुख के न कुछ भी भा रहा।


ऐसे में 

नीराजना संतत चले शिव शक्तिमय शुभ मंच से ,

आशा लगाए भारती माँ कह रही शिव संच से। 

उल्लास किंचित कम न हो, अवरोध चाहे कोइ हो, 

जाग्रत सभी की आँख हो उल्लसित हो या रोइ हो।

क्योंकि हम लोगों में पौरुष है किन्तु उसकी अनुभूति नहीं है ऐसे में तब-तब धरि प्रभु मनुज शरीरा हमें संकटों से उबार लेता है 

हमारे विस्तार की इच्छा रखते हुए उसी पौरुष को जाग्रत करने का कार्य इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी नित्य करते हैं

आचार्य जी हमें अनुभूति कराते हैं कि हम तत्त्व शक्ति विश्वास  संयम श्रद्धा पौरुष पराक्रम हैं हम आत्म का बोध करें  समाज के स्वरूप का दर्शन करें यह प्रयास करते हैं 


इसके अतिरिक्त कल सम्पन्न हुए कवि सम्मेलन जिसने हमें आनन्दित उत्साहित रोमाञ्चित कर दिया रसानुभूति करा दी कर्तव्य का अनुभव करा दिया की चर्चा आचार्य जी ने की 

भैया पवन मिश्र जी की बेटी,श्री योगेन्द्र भार्गव जी, श्री बालेश्वर जी चर्चा में क्यों आए जानने के लिए सुनें