21.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 21 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३०३ वां* सार -संक्षेप

 साजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ि,

सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं 

‘भूषण’ भनत नाद विहद नगारन के,

नदी नद मद गैबरन के रलत है ।।


तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर,

त्यौं मलिच्छ बंस पर, सेर शिवराज हैं॥

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 21 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३०३ वां* सार -संक्षेप


आइये प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में जिससे हमें प्रपंचों की उलझन दूर करने की शक्ति मिल जाए हमारे भ्रमों का निराकरण जो जाए  आत्मशक्ति की अनुभूति हो जाए जीवन में साधना का आनन्दप्रद तत्त्व मिल जाए हम तपस्वी यशस्वी जयस्वी गम्भीर कर्मानुरागी त्यागी विरागी भावधन विश्वास के विग्रह बनने की दिशा में अग्रसर हो सकें 

हमारे सांसारिक प्रपंचों में फंसे होने के बाद भी इस रहस्यात्मक संसार में  भगवान् हनुमान जी की कृपा से हम राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित शौर्य प्रमंडित अध्यात्म का आधार लेकर चल रहे हैं और इस कारण हमें विचार तो करना ही है किन्तु व्यवहार में भी चूकना नहीं है हमें जो दिशा दृष्टि मिली है उसके आधार पर हम सद्विचारों को ग्रहण कर अपने जीवन को पावनी भागीरथी जैसा बनाने का प्रयास करने में विकारों को दूर करते हैं दोषयुक्त होने पर भी सहज कर्म करने में विश्वास करते हैं


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि युगभारती के जो भी कार्यक्रम हम करें वे रूढ़िगत ढंग से न करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने छावा का उल्लेख क्यों किया भैया पङ्कज का साकल्य से क्या सम्बन्ध है प्रो निशानाथ जी जिन्होंने आचार्य जी को कभी पढ़ाया था किससे प्रभावित हुए जानने के लिए सुनें