22.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 22 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३०४ वां* सार -संक्षेप

 रामकथा के तेइ अधिकारी। जिन्ह कें सत संगति अति प्यारी॥3॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 22 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३०४ वां* सार -संक्षेप


अद्भुत हैं हमें प्रेरित और गहराई से प्रभावित करने वाले गहन अनुभूतियां कराने वाले हित का उपदेश देने वाले विद्वत्तापूर्ण ये  दूरस्थ संवाद रूपी सदाचार संप्रेषण जिनका हम नित्य बेसब्री से इंतजार करते हैं ताकि हमें संसार के साथ सार का भी परिचय हो सके हम मात्र धनार्जन में व्यस्त न रहें यशार्जन भी करें 


सम्मिलित कुटुम्बों के पर्याय भारतवर्ष ने अपने जीवनदर्शन के माध्यम से संपूर्ण विश्व को यह बताने का प्रयास किया है कि यह संसार संबन्धों का संसार है परमात्मा  जिसकी अनुभूति गुरु ने यह कहकर भी कराई कि 

त्वमेव माता च पिता त्वमेव । त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव । त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव । त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥



द्वारा निर्मित ये संबन्ध इस देश में बहुत फले फूले और विकसित हुए


अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्  तो परम अवस्था है और इतना होने के बाद भी माया से हम एक दूसरे से संबन्धित होते हैं


आचार्य जी ने बताया कि एक मां को अपनी संतान कितनी प्रिय लगती है मां के मातृत्व में भावनात्मकता अवर्णनीय है यही प्रेम का स्वरूप है जो जब चरम पर पहुंच जाता है तो कहा जाता है प्रेम ही ईश्वर है

यह सदाचार वेला अत्यन्त प्रभावकारिणी है 

सदाचार वेला तो उस समय भी होती थी जब हम विद्यालय में पढ़ रहे थे और जहां हनुमान जी हमें प्रेरणा देते थे

 हमने वहां ज्ञानार्जन किया किन्तु हमें उस ज्ञान का दंभ नहीं करना चाहिए तुलसीदास जी ने भी कभी ज्ञान का दंभ नहीं किया उन्होंने शास्त्रार्थ भी किया तो यह बताने के लिए कि शिव और राम अलग अलग नहीं हैं  भारतवर्ष में यह विशेषता है कि तुलसीदास जैसा भक्तिपथ पर चलने वाला कोई न कोई भावुक व्यक्ति नेतृत्व करने लगता है भक्तिकाल ( सन् १३१८ से १६४३ तक )  में जिस समय शासन दुष्टों के हाथ में था भक्ति से जो शक्ति इन साहित्य मनीषियों ने उत्पन्न कर दी वह अद्भुत है

आचार्य जी इसी भक्ति के भाव को हमारे भीतर प्रविष्ट कराना चाहते हैं  शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति कराने वाली भक्ति अद्भुत है भक्ति में संशय नहीं होता है भक्ति में परम विश्वास होता है

दुविधामुक्त होकर हम जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास करें और इसके लिए भक्ति को अपनाएं 

इसके अतिरिक्त कौन सी pdf नहीं खुली खीर डे का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें