प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 23 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३०५ वां* सार -संक्षेप
ज्ञान भक्ति के बिना पङ्गु है ज्ञानसंपन्ना भक्ति महाशक्तिशाली होती है ज्ञान में तर्क होता है भक्ति में विश्वास है किन्तु ज्ञान के बिना भक्ति नेत्रहीन है ज्ञान से आंखे खुलती हैं हृदय विशाल बनता है किन्तु भक्ति से हृदय कोमल बनता है ज्ञान का विषय त्याग की भावना लाता है किन्तु भक्ति में समर्पण प्रकट होता है जिनमें आनन्द का अर्णव प्रवाहित होता है वे भक्त होते हैं ज्ञान और भक्ति का मिलन अद्भुत है
प्रयाग एक ऐसा स्थान है जहां ज्ञान और भक्ति का मिलन होता है
सितासिते सरिते यत्र सङ्गते तत्राप्लुतासो दिवम् उत्पतन्ति ।
ये वै तन्वान् विसृजन्ति धीरास् ते जनासो अमृतत्वम् भजन्ते ॥
तीर्थराज प्रयाग में जहां श्वेत वर्ण की गंगा और कृष्ण वर्ण की यमुना का संगम होता है स्नान करने वाले व्यक्तियों को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है और जो धीर पुरुष वहां शरीर त्यागते हैं उन्हें मोक्ष की
कथाओं के माध्यम से हमें गंगा का अवतरण ज्ञात है गंगा में लोगों द्वारा पाप धोने से उसमें जो सांसारिक या तात्विक मलिनता आती है वह तपस्वी लोगों के संस्पर्श से हट जाती है
स्वार्थ में रत भावहीन वर्तमान पीढ़ी को इस पर विश्वास हो हमें इसका प्रयास करना चाहिए और इसके लिए हमें स्वयं विश्वास करना होगा इसके लिए हम सद्ग्रंथों का अध्ययन करें जैसे कल्याण का एक अंक है गंगा अंक जो जनवरी २०१६ में प्रकाशित हुआ
वर्तमान परिस्थितियों में
प्रयागराज जैसे तीर्थों का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हनुमान प्रसाद पोद्दार द्वारा लिखित एक लेख की चर्चा की
किन नबी जी का उल्लेख हुआ नरेन्द्र जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें