प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 24 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३०६ वां* सार -संक्षेप
बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥4॥
बड़े भाग्य से गुरु रूप में उपस्थित परमात्मा द्वारा यह कर्म योनि वाला मनुष्य शरीर मिला है। सब ग्रंथों का यही सार है कि यह शरीर भोग योनि वाले देवताओं को भी दुर्लभ है यह साधन का धाम और मोक्ष का द्वार है। इसे पाकर भी जिसने परलोक न बना लिया वह परलोक में भी दुःख पाता है, सिर पीट-पीटकर पछताता है तथा अपने को दोषी न समझकर काल,कर्म और ईश्वर पर मिथ्या दोष लगाता है
यह मनुष्य का शरीर कर्म का शरीर है और कर्म के आधार पर धर्म का शरीर है और संपूर्ण सृष्टि के मर्म का भी
परलोक जाने पर भय न लगे इसके अनुसार कर्मों को करने की आवश्यकता है नचिकेता निर्भीक भाव से यम के द्वार तक पहुंच गया था
मैंने यम के दरवाजे पर दस्तक देकर ललकारा है
मैंने सर्जन को प्रलय-पाठ पढ़ने के लिये पुकारा है
हमें मनुष्य के इस अमूल्य तन की अनुभूति होनी चाहिए यह कितना महत्त्वपूर्ण है कि
अङ्गं गलितं पलितं मुण्डं दशनविहीनं जातं तुण्डम्।
वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं तदपि न मुञ्चत्याशापिण्डम्॥
जिस का शरीर क्षीण हो चुका है, माथे के बाल सफेद हो चुके हैं, मुख दंतहीन है और हाथ में दंड लेकर चल रहा है वह वृद्ध मनुष्य भी खुद की आशा का पिंड नहीं त्यागता
ऐसा मनुष्य का शरीर पाकर हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी चाहिए और इस अनुभूति से परमात्मा भी आनन्दित होता है हम भारत में जन्मे हैं और उस भारत का अर्थ ही है जो भा अर्थात् प्रकाश /ज्ञान में रत है अंधकार और प्रकाश में अन्तर है हमें प्रकाश अच्छा लगता है अंधकार भौतिक जगत् का अज्ञान है और प्रकाश ज्ञान है
भगवान् राम ने भी मनुष्य के रूप में जन्म लेकर संपूर्ण सृष्टि के मर्म को जानकर अपने धर्म का पालन किया
निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।
हमें इसी रामत्व का अनुभव होना चाहिए
हमें भीतर का प्रकाश दिखना चाहिए हम भ्रान्तियां मिटाएंगे तो शान्ति मिलेगी
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी भैया यज्ञदत्त जी भैया संतोष मिश्र जी आचार्य श्री राज करण जी का नाम क्यों लिया उत्तरकांड के किस भाग का अवगाहन करने का हमें परामर्श मिला भाव स्नान क्या है जानने के लिए सुनें