27.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी / अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 27 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३०९ वां* सार -संक्षेप

 पढ़ते रहो बढ़ते रहो, उत्साह को त्यागो नहीं। 

चढ़ते रहो गढ़ते रहो, संसार से माँगो नहीं। 

चिढ़ते रहें वे लोग, जो निस्सार से आक्रांत हैं 

कुढ़ते वही प्रायः कि जो संभ्रांत या दिग्भ्रांत हैं।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी / अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 27 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३०९ वां* सार -संक्षेप

आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि हम संसार की चमक दमक में दिग्भ्रान्त न हों,  अपने भ्रमों का निवारण कर अपने विकारों को दूर कर उत्साहित आनन्दित रहें, चिन्तन मनन सकारात्मक विचार में रत हों, प्रातःकाल सूर्योदय के पहले उठें,हम इस सूत्र सिद्धान्त को याद रखें कि मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥ 


श्रीरामचरित मानस एक अद्वितीय अद्भुत ग्रंथ है जिसके प्रसंग हमें भारतीयता का सम्यक् प्रकार से बोध कराते हैं हमें भारत से परिचित कराते हैं और मात्र परिचित ही नहीं कराते इसके भावों में हमें निमग्न करते हैं तभी हम भारत को अपनी मां कहते हैं यहां बहती गंगा यमुना गोदावरी कावेरी आदि नदियों को हम मां के रूप में पूजते हैं 

गङ्गे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती, नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु

धरती को भी हम मां कहते हैं 

यमुना के प्रति भगवान् कृष्ण का प्रेम गंगा के प्रति भगवान् राम का प्रेम देखते ही बनता है

गंगा भक्ति भारत भक्ति एक दैवीय वरदान है जो सबको नहीं मिलता हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें प्राप्त है

मानस में एक प्रसंग है 

बहुत कीन्ह प्रभु लखन सियँ नहिं कछु केवटु लेइ।

बिदा कीन्ह करुनायतन भगति बिमल बरु देइ॥10

हम उस प्रसंग में जा रहे हैं जब भगवान् श्री रामजी, लक्ष्मणजी और सीताजी के बहुत आग्रह पर  भी केवट ने कुछ नहीं लिया तब करुणा के धाम भगवान श्री रामचन्द्रजी ने निर्मल भक्ति का वरदान देकर उसे विदा कर दिया


तब मज्जनु करि रघुकुलनाथा। पूजि पारथिव नायउ माथा॥

सियँ सुरसरिहि कहेउ कर जोरी। मातु मनोरथ पुरउबि मोरी॥1 इसके पश्चात् रघुकुल के स्वामी  प्रभु श्री रामजी ने  गंगा जी में स्नान करके पार्थिव पूजा की और शिवजी को सिर नवाया। सीताजी ने हाथ जोड़कर गंगाजी से कहा- हे मां ! मेरा मनोरथ पूरा कीजिएगा

तो मां गंगा कहती हैं 

सुनु रघुबीर प्रिया बैदेही। तब प्रभाउ जग बिदित न केही॥

लोकप होहिं बिलोकत तोरें। तोहि सेवहिं सब सिधि कर जोरें॥3॥


हे रघुवीर की प्रियतमा जानकी! सुनो, तुम्हारा प्रभाव जगत में किसे नहीं ज्ञात है? तुम्हारे देखते ही लोग लोकपाल हो जाते हैं। सब सिद्धियाँ हाथ जोड़े तुम्हारी सेवा करती हैं



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अजीत जी २००६, भैया पंकज जी भैया संदीप शुक्ल जी भैया पुनीत जी भैया आशीष जोग जी भैया संतोष मिश्र जी का नाम क्यों लिया डा जी एन वाजपेयी जी का उल्लेख क्यों हुआ पार्थिव पूजन क्या है

सरयू की चर्चा किस प्रसंग में आई जानने के लिए सुनें