28.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 28 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३१० वां* सार -संक्षेप

 प्रेम से हम गुरु जनों की, नित्य ही सेवा करें,

प्रेम से हम संस्कृति की, नित्य ही सेवा करें।

योग विद्या ब्रह्म विद्या, हो अधिक प्यारी हमें,

ब्रह्म निष्ठा प्राप्त कर के, सर्व हितकारी बनें।

॥ हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिए...॥


हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिए,

शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए॥

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 28 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३१० वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी प्रयास करते हैं कि हम वह जीवनशैली न अपनाएं जो  हमारी बुद्धियों को स्थूल कर दे हमें मात्र उदरपूर्ति  का जीवन व्यतीत करने की ओर उन्मुख कर दे हमें भोगवादी बना दे 

हमें संस्कारहीन बना दे हमें सद्विचारों से दूर कर दे हमें प्रवाहपतित कर दे 

हमें तो उस जीवनशैली को अपनाना है जिससे हम अपने दुर्गुण दूर कर सकें हम सदाचारी बन सकें

हम ज्ञानसम्पन्न बन सके हमें आत्मबोध हो सके क्योंकि जब हमें आत्मबोध होगा तो हम आत्मशोध करने की रुचि भी जाग्रत कर सकते हैं

  आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन करें समय का पालन भी करें क्योंकि समय का पालन भी आचरण का एक स्तम्भ है आचार्य जी नित्य हमें इस कारण उद्बोधित करते हैं ताकि हम अपने वास्तविक इतिहास से परिचित हों हम अपने धर्म अपने ग्रंथों अपनी संस्कृति अपने ऋषियों तपस्वियों को जानें

महापुरुषों की जीवनियों का अध्ययन करें शौर्य शक्ति की उपासना करें शौर्यप्रमंडित अध्यात्म को समझें और ये सब स्वयं जानकर भावी पीढ़ी को भी बता सकें उनमें व्याप्त भ्रमों को दूर कर सकें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने जद्यपि भगिनी कीन्हि कुरूपा। बध लायक नहिं पुरुष अनूपा॥

देहु तुरत निज नारि दुराई। जीअत भवन जाहु द्वौ भाई॥3॥ का उल्लेख क्यों किया निर्णयसिन्धु क्या है तुलसीराम की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें