नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं॥
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं॥1॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी/चतुर्दशी ( महाशिवरात्रि )विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 26 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३०८ वां* सार -संक्षेप
इन अद्भुत कल्याणकारी प्रेरक सदाचार संप्रेषणों का ये जो क्रम चल रहा है यह भगवान् की कृपा है विषम परिस्थितियों में घिरे होने पर भी अखंड भारत के उपासक आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं ताकि हम भाव, विचार और क्रिया का सामञ्जस्य कर सकें अध्यात्म को समझ सकें विकारों को दूर कर सकें शक्ति सामर्थ्य पराक्रम की अनुभूति कर सकें अस्ताचल वाले देशों के कारण भीतर भरी हीनभावना को दूर कर सकें
भारतीय संस्कृति भारतीय दर्शन भारतीय विचार के वैशिष्ट्य को जान सकें भक्ति के साथ शक्ति के सामञ्जस्य की अनिवार्यता को जान सकें
यह मान सकें कि हमारे लिए संसार के साथ सार भी महत्त्वपूर्ण है
एक ही तत्त्व की तीन मूर्तियां हैं ब्रह्मा विष्णु और महेश अर्थात् शिव
शिव कल्याणकारी है और रुद्र भयानक
कुछ लोग भगवान् विष्णु का आधार लेकर पूजा करते हैं वे वैष्णव हैं इसी प्रकार भगवान् शिव को पूजने वाले शैव हैं
तुलसीदास जी ने दोनों का सामञ्जस्य बैठा दिया क्योंकि तुलसीदास जी को उस समय समाज को संगठित करने के लिए शैवों और वैष्णवों के बीच के मतभेदों को समाप्त भी करना आवश्यक लगा
परम रम्य उत्तम यह धरनी। महिमा अमित जाइ नहिं बरनी॥
करिहउँ इहाँ संभु थापना। मोरे हृदयँ परम कलपना॥
इसके अतिरिक्त
एक बार हर मंदिर जपत रहेउँ सिव नाम।
गुर आयउ अभिमान तें उठि नहिं कीन्ह प्रनाम॥106 क॥
का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने क्या बताया गंगाजल में अचार डालने की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें