*मानव जीवन सचमुच में अद्भुत अनुपम और विलक्षण है*
*तिल तिल जलकर प्रकाश देते रहना ही इसका लक्षण है*
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 1 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३११वां* सार -संक्षेप
हमारे लिए राष्ट्र सर्वोपरि है हम चाहते हैं कि राष्ट्र का संवर्धन हो इसी कारण हमने अपना लक्ष्य बनाया है वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
एक राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित के रूप में परमार्थ हित में सदैव रत आचार्य जी नित्य हित का हमें उपदेश देते हैं ताकि हम अपने षड् दोष दूर कर सकें
षड् दोषा: पुरूषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता। निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध: आलस्यं दीर्घसूत्रता॥
हम सिद्धान्त और आदर्श पर विश्वास करें
यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि
हम मनुष्य हैं हमें समझना चाहिए कि मानव जीवन सृजन कर्म की एक उत्कृष्ट परिभाषा है
आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि मां सरस्वती को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए हमें अपना विद्यालय भी नहीं भूलना चाहिए जहां हमने अध्ययन किया है हमारे अन्दर उसके प्रति श्रद्धा का भाव होना चाहिए हमें वहां के विकारों को न ध्यान देकर अच्छाइयों को देखना चाहिए हमें अपने मनुष्यत्व से डिगना नहीं चाहिए
अच्छाई और बुराई का संघर्ष चलता रहेगा किन्तु हमें सन्मार्ग पर ही चलना है
हमें समाज को सशक्त बनाना है समाज यदि अशक्त है तो हमारा पौरुष पराक्रम कलंकित रहेगा
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