4.2.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 4 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२८६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 4 फरवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२८६ वां* सार -संक्षेप


जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।

संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥

विधाता ने जड़-चेतन संसार को गुणमय दोषमय रचा है, किन्तु संत रूपी हंस दोष रूपी जल को त्याग गुण रूपी दूध को ही ग्रहण करते हैं

उसी तरह हम भी विकारों को त्याग सद्विचारों को ग्रहण करने का कोई भी अवसर न खोएं ऐसा ही एक अवसर नित्य हमें इस सदाचार वेला के रूप में प्राप्त होता है  हमें इसका लाभ उठाना चाहिए



हमने अपना लक्ष्य बनाया है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष आचार्य जी कहते हैं कि  सामाजिक दायित्व को हम केवल वाणी में ही न रखकर क्रिया में भी प्रदर्शित करें आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हमारा स्व का कर्तव्यबोध मार्गान्तरित न हो कुछ समय आत्मचिन्तन हेतु निकालें आत्मीय जनों से व्यवहार मृदु रखें


स्वभाव से नियत किये हुए स्वधर्मरूप कर्म को करते हुए व्यक्ति को पापों की प्राप्ति नहीं होती है 

प्रयास करने पर हमें अपना स्वाभाविक गुण भी पता चल जाएगा जो कार्य करें मनोयोग पूर्वक करें सहज कर्म दोषयुक्त होते हैं फिर भी हमें उनका त्याग नहीं करना चाहिए


अपनी बुद्धि आसक्तिरहित रखें  शरीर को वश में रखें हम स्पृहारहित हों

चरैवेति का सिद्धान्त अपनाएं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम २ फरवरी को सम्पन्न हुई कवि गोष्ठी की समीक्षा करें 

आगामी कार्यक्रमों के विषय में आचार्य जी ने आज क्या सुझाव दिए भैया मोहन जी भैया मनीष जी भैया राघवेन्द्र जी भैया डा दीपक जी भैया पंकज श्रीवास्तव जी भैया विकास जी भैया वीरेन्द्र जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें