प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 7 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२८९ वां* सार -संक्षेप
प्रासंगिक महत्त्वपूर्ण विषयों को उठाने वाले ये सदाचार संप्रेषण हमें उत्साहित आनन्दित उत्थित करने के लिए आचार्य जी के एक पवित्र कार्य के रूप में उपस्थित हो रहे हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए हमें यह सुअवसर नहीं खोना है यह प्रयास करें
मन पछितैहै अवसर बीते।
दुर्लभ देह पाइ हरिपद भजु, करम, बचन अरु हीते॥१॥
सहसबाहु, दसबदन आदि नप बचे न काल बलीते।
हम हम करि धन-धाम सँवारे, अंत चले उठि रीते॥२॥
सुत-बनितादि जानि स्वारथरत न करु नेह सबहीते।
अंतहु तोहिं तजेंगे पामर! तू न तजै अबहीते॥३॥
अब नाथहिं अनुरागु जागु जड़, त्यागु दुरासा जीते।
बुझै न काम-अगिनि तुलसी कहुँ, बिषयभोग बहु घी ते॥४॥
आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि
हमारी कामना उत्थित होकर भावना बने वह अधोगति प्राप्त कर वासना न बने हम अनुशासित संयमी देशभक्त साधक बनें हमारे भीतर समाजोन्मुखता इतनी भर जाए कि राष्ट्र हमारे कार्यों की प्रशंसा करे चर्चा करे
हम राष्ट्रीय चिन्तन को पंगु करने वाले दुष्टों का निरसन करने के लिए शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की गहराई में उतरकर संगठित हो जाएं जाग्रत हों अपने परिवेश के प्रति संवेदनशील हों
अपने कर्तव्य से विमुख न हों छोटे अवरोधों के आने पर अपने बड़े लक्ष्य का त्याग नहीं करना चाहिए चुनौतियों से भयभीत होकर नहीं भागें
पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं श्रुणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात् ॥
जब हम विद्यालय में अध्ययन के लिए पहुंचे थे तब आचार्य जी ने यही उम्मीद की थी
मैंने तुमको ही विषय मानकर गीत लिखे
तुम ही मेरे उद्देश्य विधेय क्रियाविधि थे
तुम ही मेरे साथी सहयोगी पुत्र मित्र
भावना विचार कर्मकौशल युत सन्निधि थे
तुम थे अतीत के शौर्य पराक्रम विजयमन्त्र
तुम वर्तमान के कर्मयज्ञ के होता थे
तुम ही भविष्य के उषागान उत्सव उमंग
आदर्श सनातन धर्म तन्त्र प्रस्तोता थे
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने चित्रकूट कार्यक्रम की चर्चा में आज क्या कहा रत्नाकर का बक्सा कहां खो गया था भैया अतुल मिश्र जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें