प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 8 फरवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२९० वां* सार -संक्षेप
स्थान : प्रभु राम की साधना - स्थली और भरत की समर्पण भूमि चित्रकूट ( यहां ज्ञान भक्ति वैराग्य की अजस्र धारा बहती है )
आइये आत्मदर्शन का भाव ओढ़कर समर्पित भाव से प्रवेश करें आज की वेला में
संसार एक बड़ा अद्भुत नाट्यमंच है यहां भिन्न भिन्न शैलियों का प्रस्तुतीकरण होता है पश्चिमी जगत् जिसकी अलग प्रकार की जीवन शैली है से इतर हमारी शैली भारतीय मनीषा ने गम्भीर चिन्तन मनन के पश्चात् प्रस्तुत की है उस शैली में परिवार के भावबोध का वैशिष्ट्य अवर्णनीय है इस भावबोध में भावनात्मक अपनत्व प्रचुरता में है
इसी भावनात्मक अपनत्व को गोस्वामी तुलसीदास ने मानस में कई स्थानों पर प्रकट किया है जैसे एक प्रसंग है
लोगों की सारी शंकाओं कुशंकाओं
को एक किनारे करते हुए परिवार भाव की भावना से भावित
*सिर भर जाउँ उचित अस मोरा। सब तें सेवक धरमु कठोरा॥* कहने वाले
तपस्वी भरत पैदल
गवने भरत पयादेहिं पाए। कोतल संग जाहिं डोरिआए॥2॥
भगवान् राम से मिलने चित्रकूट आए हैं
लसत मंजु मुनि मंडली मध्य सीय रघुचंदु।
ग्यान सभाँ जनु तनु धरें भगति सच्चिदानंदु॥239॥
मुनियों, जो मनन करने में रत हैं और जो ऋषियों की तरह अपने लक्ष्य पर पहुंचे नहीं हैं अपितु ज्ञान भक्ति युक्त सिद्धि के मार्ग पर हैं, की सुन्दर मंडली के बीच में मां सीता और रघुकुलचंद्र प्रभु राम ऐसे सुशोभित हो रहे हैं मानो ज्ञान की सभा में साक्षात् भक्ति (मां सीता )और सच्चिदानन्द ( भगवान् राम )शरीर धारण करके विराजमान हैं ॥239॥
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम चित्रकूट जाने का सिलसिला बनाएं
भारत देश की अनुभूति करें और उसे अपने भीतर प्रवेश कराएं सिद्ध करें कि हम भारत माता के सच्चे पुत्र हैं
इसके अतिरिक्त भैया विकास जी भैया आलोक जी (सतना ) भैया राघवेन्द्र जी भैया अतुल मिश्र जी भैया अरविन्द जी भैया पुनीत जी भैया दिनेश प्रताप जी भैया धर्मेन्द्र सिंह जी
की चर्चा आचार्य जी ने क्यों की आचार्य जी किस मार्ग से चित्रकूट पहुंचे बस से चित्रकूट कौन पहुंचा
भूमि जाग्रत कैसे होती है नाना जी देशमुख और रामभद्राचार्य जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें