धर्मार्थ-काम-मोक्षाणाम्, उपदेश-समन्वितम्
पूर्व-वृत्त-कथा-युक्तम् इतिहासं प्रचक्षते ll
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 10 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३२० वां* सार -संक्षेप
प्रेम, अपनत्व , आत्मीयता में अद्भुत शक्ति है किन्तु दुर्भाग्यवश हमने जब इस शक्ति को विस्मृत कर दिया तब हमें बेचारगी घेरने लगी
बेचारगी से बचने के लिए हमें उसी शक्ति की अनुभूति अनेक प्रापञ्चिक कार्यों में फंसे रहने वाले आचार्य जी अपना बहुमूल्य समय निकालकर कराते हैं और इस कारण हमारा भी कर्तव्य बन जाता है कि हम प्रेम आत्मीयता का विस्तार करें समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित सुयोग्य भावनासम्पन्न आचार्य जी का प्रयास रहता है कि राष्ट्र -बोध, राष्ट्र -सेवा का भाव हमारे अन्दर विकसित हो
हम अपने विकार दूर करें हम अपना आत्मबोध जाग्रत करें
भगवान् राम की कथा के भावों में प्रवेश कर हम रामत्व की अनुभूति करें रामत्व से संयुत प्रभु राम की कथा अद्भुत है
मंगल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की।
गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की॥
प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी
भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी॥
कुशल कवि और वक्ता गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि श्री राम की कथा कल्याण करने वाली और कलियुग के पापों को हरने वाली है। मेरी इस भद्दी कविता रूपी नदी की चाल पवित्र जल वाली नदी गंगाजी की चाल की भाँति टेढ़ी है। प्रभु राम के सुंदर यश की संगति से यह कविता सुंदर तथा सज्जनों के मन को भाने वाली हो जाएगी। श्मशान की अपवित्र राख भी शिव जी के अंग के संग से सुहावनी लगती है और स्मरण करते ही पवित्र करने वाली होती है।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हरिशंकर शर्मा जी का नाम क्यों लिया भैया शशि शर्मा जी १९७५ का उल्लेख क्यों हुआ भैया विनय अजमानी जी द्वारा आयोजित और आचार्य जी द्वारा कही जाने वाली श्री राम की कथा के लिए आचार्य जी हमसे क्या अपेक्षा कर रहे हैं राजा साहब परिन्दा कौन थे जानने के लिए सुनें
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