11.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 11 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३२१ वां* सार -संक्षेप

 जय श्री राम 


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 11 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३२१ वां* सार -संक्षेप


हमारे कल्याण के लिए आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय निकालकर हमें उद्बोधित प्रबोधित करते हैं आनन्द की अनुभूति कराते हैं यह हमारा सौभाग्य है

इन वेलाओं



*जहां श्रम शक्ति सेवा साधनामय प्रेम होता है*

*जहां  निज देश के प्रति प्रेम निष्ठा नेम होता है*

*जहां अपनों परायों की सही पहचान होती है*

*जहां चर्चा कथा में पूर्वजों की शान होती है*...




 के माध्यम से हम असार के साथ सार को भी जानने का प्रयास करते हैं अपने जीवन को सार्थक बनाने का प्रयत्न करते हैं

इनका महत्त्व इस कारण भी वृद्धिङ्गत हो जाता है क्यों कि इनमें ज्ञान भावनाओं के साथ समन्वित होकर चलता है आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम दंभरहित शक्ति का अर्जन करें और देश समाज के हित हेतु शुभ शक्तियों को संगठित करते चलें 

व्यापारमय संसार से इतर अपनी सोच रखें 

हमारे भारतवर्ष जहां  आज भी सांकेतिक यज्ञ धूम उठते रहते हैं की आर्ष परम्परा की विशेषता है कि उसने ज्ञान और व्यवहार को अपनी भावनाओं से बांध दिया


हमारे ग्रंथ अद्भुत हैं जिनमें वेद ब्राह्मण आरण्यक उपनिषद् गीता रामायण आदि अनेक प्रमुख ग्रंथ हैं 

भगवान् राम की कथा का वर्णन करते रामायणों के अनेक स्वरूप हैं 

आज भी प्रासंगिक यह कथा ऐसी है जिसकी  हमारे लिए उपयोगिता अवर्णनीय है इस कथा का श्रवण कर हम संकल्पित होने का प्रयास करें 


आदिकाव्य से 


श्री राम शरणं समस्तजगतां, रामं विना का गति।

रामेण प्रतिहन्ते कलिमलं, रामाय कार्यं नम:।

रामात् त्रस्यति कालभीमभुजगो, रामस्य सर्वं वशे ।

रामे भक्ति खण्डिता भवतु मे, राम त्वमेवाश्रयः ।।


श्री राम जी समस्त संसार को शरण देने वाले हैं, श्री राम के बिना दूसरी कौन सी गति है ? श्रीराम कलियुग के समस्त दोषों को नष्ट कर देते हैं  अतः श्री राम जी को नमस्कार करना चाहिए। श्रीराम से कालरूपी भयंकर सर्प भी डरता है। जगत् का सब कुछ श्रीराम के वश में है। श्रीराम में मेरी अखंड भक्ति बनी रहे ऐसी कामना है । हे राम! आप ही मेरे आधार हैं।

श्रीरामचरित मानस की रचना तुलसीदास जी ने विषम परिस्थितियों

(मांगि के खाइबो, मसीत को सोइबो)

 में जब अकबर के शासनकाल में राष्ट्रभक्त त्रस्त थे


अपने आत्मतत्त्व, आत्मसत्त्व, आत्मबोध को जाग्रत कर 


 की 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विनय अजमानी जी भैया मुकेश जी भैया राघवेन्द्र जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें