प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष चतुर्दशी /पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 13 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३२३ वां* सार -संक्षेप
मनुष्य के रूप में जन्म लेने की अपनी सार्थकता को सिद्ध करने के लिए, मनुष्योचित व्यवहार करने के लिए,भक्ति भाव में विभोर होने के लिए, अपने मन को (द्वीप को तट न समझते हुए ) हमारे द्वारा निर्धारित लक्ष्य की दिशा में प्रविष्ट कराने के लिए, अपने अस्तव्यस्त जीवन को व्यवस्थित करने के लिए, संतों, ज्ञानियों, ऋषियों, कवियों, भावकों, भावुकों के शब्दरत्नों से आनन्दित होने के लिए, अपने विकारों को दूर करने के लिए,
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्। सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की अनुभूति के लिए, अपने भीतर छिपी शक्तियों की पहचान के लिए
हमें इन अद्भुत हितकारी सदाचार संप्रेषणों की नित्य प्रतीक्षा रहती है
ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै॥
परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै।
यह हनुमान जी
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै आंधर कों सब कछु दरसाई॥
की कृपा है
हम ज्योति के उपासक गति के स्वर उदय के गीत इन सदाचार संप्रेषणों के विचारों को सुनकर कर्मरत हों किन्तु कर्म के फल की इच्छा न करते हुए
क्यों गहरा अंधकार छाया हुआ है दुष्टों से अपने को अपने राष्ट्रभक्त समाज को भयभीत हुए बिना बचाना है ऐसे में
राम का आदर्श गीता ज्ञान का निष्कर्ष लेकर बढ़ चलो साथी अभी गहरा अंधेरा है..
गीता के दूसरे अध्याय में
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।2.48।।
यदि कर्मफल से प्रेरित होकर कर्म नहीं करने चाहिए तो किस प्रकार करने चाहिए इस पर भगवान् कहते हैं
हे अर्जुन आसक्ति का परित्याग कर तथा सिद्धि/ असिद्धि में समभाव होकर योग में स्थित हो तुम कर्म करो। यह समभाव ही योग कहलाता है।
भक्ति में शक्ति है
भक्ति में रमने वाले मनुष्य की अद्भुत स्थिति होती है भक्त लीला दर्शन में भी मग्न हो सकता है या रूप दर्शन में और वह भाव दर्शन में भी मग्न हो सकता है
अपने प्राणों का दम भगवान् की शक्ति के साथ समन्वित हो जाए तो आनन्द ही आनन्द है
इसके अतिरिक्त कर्म धर्म बने तो क्या होता है भैया दिनेश जी (राठ वाले भैया ) का नाम क्यों आया आचार्य माधवेन्द्र पुरी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें