*मैं रचनाकार अनोखा हूँ*
मंगलविधान का उन्नायक
मैं सृष्टि सुधानिधि का गायक
स्रष्टा का सर्वप्रमुख पायक
मैं जीवमात्र का सुखदायक
पर, जब तब लगता " धोखा" हूँ।
मैं रचनाकार अनोखा....
✍️ ओमशंकर
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा /चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 14 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३२४ वां* सार -संक्षेप
आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर हम भारतीय जीवन दर्शन, सनातन धर्म को गहराई से जानें, मनमुटावों को दूर करें, भारतीय पर्वों को उत्साह से मनाएं,अपने अन्दर के दीपकत्व की अनुभूति करें उसकी सार्थकता सिद्ध करें ताकि समाज का अंधकार दूर सके, जीवमात्र के सुखदायक बनें,भावना का प्रवाह उत्पन्न करें,मात्र भौतिक भंवर में ही रमे रहने से बचें,पूर्त कर्म करने का प्रयास करें,भीतर बह रहे आनन्दार्णव का अनुभव करें, राष्ट्र सेवा के अपने उद्देश्य को न भूलें अद्भुत है हमारा देश कि
यह वेद विदों का देश तपस्या सेवा इसकी निष्ठा है
इसका मंगल विश्वास जगत ईश्वर की प्राण प्रतिष्ठा है
यह जगन्नियन्ता का विश्वासी पौरुष की परिभाषा है
संपूर्ण जगत के संरक्षण की एकमात्र शिव आशा है
और इसकी अनुभूति करते हुए शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की महत्ता को समझें, लगातार धर्ममय कर्म करते चलें
हमारे यहां अपार शक्ति के भंडार तीन भक्त बहुत प्रसिद्ध हुए हैं जिन्होंने अनुभव किया कि भक्ति में अथाह शक्ति होती है
महात्मा सूरदास
(आजु हौं एक-एक करि टरिहौं।
के तुमहीं के हमहीं, माधौ, अपुन भरोसे लरिहौं।
हौं तौ पतित सात पीढिन कौ, पतिते ह्वै निस्तरिहौं।
अब हौं उघरि नच्यो चाहत हौं, तुम्हे बिरद बिन करिहौं।
कत अपनी परतीति नसावत, मैं पायौ हरि हीरा।
सूर पतित तबहीं उठिहै, प्रभु, जब हँसि दैहौ बीरा।)
, महात्मा तुलसीदास
(जाके प्रिय न राम-बदैही।
तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही॥)
, मीराबाई
(अब तो बात फैल गई, जानै सब कोई।
दासि मीरा लाल गिरधर, होई सो होई॥)
जिनकी एकनिष्ठा अवर्णनीय है
सूरदास तुलसीदास से ३३ वर्ष बड़े थे और उन दोनों की ईर्ष्या प्रतिस्पर्धा की दुर्भावना से इतर भावनापूर्ण भेंट हुई है उस काल में तुलसीदास एक जाज्वल्यमान् नक्षत्र की तरह चमक रहे थे तुलसी उनसे लिपट गए और रुंधे स्वर में बोले
आपके पदों को गा गाकर मैंने भीख मांगी है और मेरा पेट भरा है आप मेरे प्रकाश स्तम्भ हैं
राजमहिषी मीराबाई तुलसी से १३ वर्ष बड़ी थीं और उनका लिखा पत्र बहुत प्रसिद्ध है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने डा राजबली पांडेय का नाम क्यों लिया अ अक्षर को किस प्रकार कामधेनु तन्त्र में वर्णित किया गया है, युगभारती में कितने संस्थापक हैं जानने के लिए सुनें