प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 16 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३२६ वां* सार -संक्षेप
हनुमान जी की कृपा से आचार्य जी द्वारा हम सदाचारमय विचार तब से ग्रहण कर रहे हैं जब हम छोटी आयु के थे इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य यही रहा है कि हम आत्मबोध से संयुत हो जाएं, अपनी संवेदनशीलता बनाए रखें,भारतीय जीवन दर्शन के वैशिष्ट्य को गहराई से जान सकें जिसके चिन्तन में यह भी है कि हम कभी नष्ट नहीं होते , हम अपने कर्तव्य बोध से विमुख न हों, हम स्थूलता के साथ सूक्ष्मता का भी चिन्तन करें, अपने परिवार में भी हम सदाचारमय विचारों का संप्रेषण करें
कहीं क्रंदन रुदन विध्वंस का वीभत्स मंजर है
कहीं लौलुप्य लघुता लोभ का मारक समंदर है
मगर इस दौर में भी हम प्रकाशक दीप जैसे हैं
यही संदेश दें जग को कि हम आश्रयी मन्दर¹ हैं
1- पर्वत
हम यह अनुभव करें कि हम प्रकाशक दीप जैसे हैं जो समाज का अंधकार दूर करने में सहायक हैं जैसा तुलसीदास रहे
अकबर के शासनकाल में जब राष्ट्रभक्त समाज को अनेक समस्याओं और असहमति का सामना करना पड़ रहा था, तब तुलसीदास ने श्री रामचरित मानस से धार्मिक जागरूकता, भक्ति, और शौर्य प्रमंडित अध्यात्म का प्रसार किया। उन्होंने सनातन धर्म के मूल्यों को पुनर्जीवित किया और समाज में समता, भाईचारे, और सहिष्णुता का संदेश फैलाया। उनके द्वारा लिखित ग्रंथ ने समाज को धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से सशक्त किया और राष्ट्रभक्त समाज को दुष्ट अकबर के शासन में भी अपने आदर्शों और विश्वासों पर टिके रहने की प्रेरणा दी।
उन्होंने भगवान राम
निसिचर हीन करहुँ महि भुज उठाई पन कीन्ह
को आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बालकांड के किस भाग को पढ़ने का परामर्श दिया १७, १८ को आचार्य जी कहां जा रहे हैं, वर्षफल की चर्चा क्यों हुई, शूकर क्षेत्र का उल्लेख क्यों हुआ, भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी और भैया मनीष कृष्णा जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें