जाग रहा यह कौन धनुर्धर, जब कि भुवन भर सोता है?
भोगी कुसुमायुध योगी-सा, बना दृष्टिगत होता है॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 17 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३२७ वां* सार -संक्षेप
आचार्य जी का नित्य प्रयास रहता है कि हम अखंड भारत के उपासक शौर्य पराक्रम की अनुभूति करें, हमारा पौरुष जाग्रत हो,हमारी साधना सिद्धि तक पहुंचे, हम संसार के प्रपंचों में फंसे रहने पर भी सार के तत्त्व को ग्रहण करने का समय निकाल सकें, हम समय का सदुपयोग करें, हमारे भीतर अवस्थित ऊर्जा ऊष्मा कर्म के लिए प्रवृत्त हो,हम तत्त्व शक्ति की अनुभूति करते हुए भारत माता की सेवा में रत हों,हमें भारत और प्रभु राम एकाकार रूप में आनन्दप्रद दर्शन दें, प्रभु राम का रामत्व
हम छत्री मृगया बन करहीं। तुम्ह से खल मृग खोजत फिरहीं॥
रिपु बलवंत देखि नहिं डरहीं। एक बार कालहु सन लरहीं॥5॥
हमारे भीतर प्रविष्ट हो ताकि हम संसार के जंजालों से मुक्त हो सकें
प्रभु राम गुणों की खान हैं सुन्दर कांड में उनका गुणगान इस प्रकार है
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम् ll
शान्त, सनातन, अप्रमेय, निष्पाप, मोक्ष और परम शान्ति प्रदान करने वाले, ब्रह्मा जी, शंकर जी और शेषनाग जी से निरंतर सेवित, वेदों के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में लीला करने वाले , समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुवंश में श्रेष्ठ तथा राजाओं में शिरोमणि श्रीराम कहलाने वाले जगत् को धारण करने वाले जगदीश्वर की मैं वंदना करता हूँ
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने पंचवटी का उल्लेख क्यों किया, भैया संतोष जी भैया शैलेन्द्र पांडेय जी का उल्लेख क्यों हुआ, रघुवंश ही क्यों है रामवंश क्यों नहीं जानने के लिए सुनें