18.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 18 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३२८ वां* सार -संक्षेप

 रघुबंसिन्ह महुँ जहँ कोउ होई। तेहिं समाज अस कहइ न कोई॥

कही जनक जसि अनुचित बानी। बिद्यमान रघुकुलमनि जानी॥

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष   चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 18 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३२८ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं ग्राम आधारित गोवंश आधारित इस देश के हम जाग्रत पुरोहित बनें, यशस्विता के लिए प्रयास करें, गांव की ओर उन्मुख होने का प्रयास करें, अपने आत्म की ओर भी उन्मुखता करें, रामत्व की अनुभूति करें 


दूसरी ही सृष्टि बना देने वाले  अत्यन्त क्षमतावान्  क्षत्रिय से ब्राह्मण बने विश्वामित्र के यज्ञों का जब रावण विध्वंस करने लगा तो विश्वामित्र को एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता हुई जो संपूर्ण देश को एक सूत्र में बांध सके और दुष्ट रावण का आतंक समाप्त कर सके यद्यपि उस समय जनक भी बहुत बलशाली थे और राजा दशरथ (नेमि ) भी अत्यन्त बलशाली जिन्होंने कैकेयी के साथ देवलोक जाकर असुर शम्बर  को पराजित कर दिया था लेकिन ये सब लोग एकांगिता अपनाए हुए थे और रावण की ओर ध्यान नहीं दे रहे थे जिसका लाभ रावण उठा रहा था

और तब विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण की मांग की यहीं से नर रूप में लीला कर रहे भगवान् राम की यशस्विता प्रारम्भ होती है उन्हें तो राजतिलक होने पर सुविधाओं का जीवन मिलता किन्तु उन्होंने सुविधाओं का त्याग कर वन जाने का निर्णय किया 


प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः।

मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मंजुलमंगलप्रदा॥2॥

रघुकुल को आनंद देने वाले श्री रामचन्द्रजी के मुखारविंद की जो शोभा राज्याभिषेक की बात सुनकर न तो प्रसन्नता को प्राप्त हुई और न वनवास के दुःख से मलिन ही हुई, वह छवि मेरे लिए सदा सुंदर मंगलों की देने वाली हो


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने सरौंहां में हो रहे किस कार्यक्रम की चर्चा की,वहां मेला कब लगने जा रहा है,चहारुम क्या है, कवितावली में सबसे लम्बा कांड कौन सा है जानने के लिए सुनें