यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते।येन जातानि जीवन्ति।
यत् प्रयन्त्यभिसंविशन्ति। तद्विजिज्ञासस्व। तद् ब्रह्मेति।स तपोऽतप्यत। स तपस्तप्त्वा॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 2 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३१२वां* सार -संक्षेप
हमारे ऋषियों का चिन्तन अद्भुत है उसी चिन्तन का आधार लेकर आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं ताकि हम मनुष्य के रूप में जन्म लेने के वैशिष्ट्य को,सौभाग्य को जान सकें, अहं ब्रह्मास्मि की अनुभूति कर सकें,अपनी अन्तर्निहित शक्तियों को जान सकें अपने भीतर कर्म -चैतन्य का भाव जगा सकें, हम अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन की ओर उन्मुख हो सकें हम अपने को असहाय असमर्थ अक्षम अशक्त बनाने वाली पीड़ाकारक बेचारगी से बचा सकें
सदाचारमय जीवन हमें आनन्दित करता है अन्यथा संसार के बोझ से हम बोझिल ही रहें गार्हस्थ्य जीवन के संकटों से संतप्त रहें अध्यात्म के मार्ग पर चलने पर पराकाष्ठा पर पहुंचे चिन्तन से हम स्थूल तत्त्व को विस्मृत कर सूक्ष्म में विचरण करने लगते हैं ज्ञान की अनुभूति करने लगते हैं भोगों में लिप्त करने वाले दैत्य भाव को विस्मृत करने लगते हैं
आचार्य जी यह भी परामर्श देते हैं कि मात्र हम चिन्तन में न बैठे रहें हम कर्तव्य का पालन करें समाज और राष्ट्र के लिए कार्य करें संगठित रहें शक्ति सामर्थ्य पराक्रम की अनुभूति करें
आचार्य जी ने ब्रह्म शब्द की विस्तृत व्याख्या करते हुए
सर्वं खल्विदं ब्रह्म तज्जलानिति शान्त उपासित। अथ खलु क्रतुमयः पुरुषो यथाक्रतुस्मिल्लोके पुरुषो भवति तथेतः प्रेत भवति स क्रतुं कुर्वीत॥
में आये तज्जलान् शब्द की व्याख्या की
तज्जलान् ऋषियों द्वारा वास्तविकता या ब्रह्म का वर्णन करने के लिए प्रयुक्त की गई कुछ रहस्यमय विधियों में से एक है । यह सृष्टि आदि के संदर्भ में वास्तविकता की समस्या के लिए एक ब्रह्माण्ड संबंधी दृष्टिकोण है। यह शब्द ब्रह्म के तीन मूल गुणों का सकारात्मक रूप से वर्णन करता है
आचार्य जी ने यह भी बताया कि ब्रह्म जब संसारी भाव में आता है तो परमात्मा हो जाता है
और उसका सूक्ष्म अंश हम आत्मा हो जाते हैं
इसके अतिरिक्त humpty dumpty के साथ क्या पढ़ाया जाना चाहिए स्वामी परमानन्द का उल्लेख क्यों हुआ घूस और बच्चों में क्या सम्बन्ध है भूमा क्या है जानने के लिए सुनें