प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 3 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३१३ वां* सार -संक्षेप
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ll
इस संसार में कर्म करते हुए ही मनुष्य को सौ वर्ष जीने की इच्छा करनी चाहिए हमारे लिए इस प्रकार का ही विधान है, इससे अलग किसी और प्रकार का नहीं है, इस प्रकार कर्म करते हुए ही जीने की इच्छा से मनुष्य में कर्म का लेप नहीं होता।
यह हमारा ऋषि कहता है और यही ऋषित्व हमारे भीतर प्रविष्ट है किन्तु हम उसका अनुभव नहीं कर रहे हैं
इसी ऋषित्व की अनुभूति के लिए, भक्ति में शक्ति है परमात्मा जिसके नियन्त्रण में हम चल रहे हैं अलौकिक है इस पर दृढ़ विश्वास करने के लिए, स्थूल की पूजा में ही अपने को व्यस्त होने से बचाने के लिए,अपने शरीर को सूक्ष्मता से संयुत करने के अभ्यासी बनने के लिए, व्यावहारिक प्रेम आत्मीयता तप त्याग संयम समर्पण विश्वास का विस्तार करने के लिए, अपने में ही संकुचित होने से बचने के लिए, इस सिद्धान्त पर विश्वास करने के लिए कि बीज कभी मरता नहीं है, आशंका भय भ्रम ईर्ष्या बेचारगी दूर करने के लिए, आत्मविश्वास का विस्तार करने के लिए अपनों पर विश्वास करने के लिए, दुष्टों से सजग रहने के लिए आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं
हम ऊहापोह से मुक्त होकर आत्मानन्द की अनुभूति करें चिन्तन मनन ध्यान प्राणायाम आदि करें
जो कार्य करें उसे ही पूजा मानें
एक छंद अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है इसकी गहराई में जाएं
ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै। ॐ शांतिः शांतिः शांतिः
आचार्य जी ने शोभन सरकार का उल्लेख क्यों किया भैया विजय गर्ग जी के विषय में क्या बताया कल की बैठक की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें