प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 20 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३३० वां* सार -संक्षेप
भगवान् की बनाई ये सृष्टि अद्भुत है
तत्त्वमस्यादिवाक्येन स्वात्मा हि प्रतिपादितः।
नेति नेति श्रुतिर्ब्रूयादनृतं पाञ्चभौतिकम् ॥ १.२५॥
परमात्मा की लीला अद्भुत है हम उस लीला के पात्र हैं हमें अपनी भूमिका पहचाननी होगी हम व्यक्तित्व हैं और इसी कारण कृतित्व हमसे सदैव संयुत रहेगा और कृतित्व ऐसा जो यशस्विता प्रदान करे परमात्मा हमें संपूर्ण सृष्टि के दर्शन कराता है उसे अनुभव कराता है
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्। सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्
निर्द्वंद्व होकर अपने कर्तव्य का पालन करें यह सत्य है कि हम कभी नहीं मरते हमारा शरीर नष्ट होता है ऐसा अद्भुत चिन्तन है हमारे भारतवर्ष का
इसी कारण क्योंकि हम भारत में जन्मे हैं हमें इस पर गर्व होना चाहिए हमें अपनी परम्परा अपनी संस्कृति अपने ग्रंथों अपने वास्तविक इतिहास पर गर्व करना चाहिए
हमारा जो वास्तविक इतिहास है वह अद्भुत है उसी वास्तविक इतिहास को उद्धृत करते हमारे ग्रंथ जैसे पुराण,उपनिषद्, श्री रामचरित मानस कपोल कल्पना नहीं हैं यदि ये सब हम कल्पना समझेंगे तो यह हमारा भ्रम ही है यथार्थ के बिना कल्पना होती ही नहीं है कुछ न कुछ यथार्थ का अंश अवश्य ही होगा जिसके कारण कल्पना संभव है
उदाहरण के लिए जैसा हमारे ग्रंथों में लिखा है कि शम्बर के विरुद्ध दशरथ इन्द्र की सहायता करने देवलोक गए तो उनका देवलोक जाना कल्पना पर आधारित नहीं है यह वास्तविक घटना है इसके लिए हमें अपनी दृष्टि सुस्पष्ट रखनी होगी भाव जगत् में हम प्रवेश करने की चेष्टा करें तो यह संभव है हमें जब विश्वास करने का अभ्यास होगा तो यह सब स्पष्ट होता चला जाएगा अस्ताचल देशों के कारण हमारे ऊपर जो भ्रम का परदा पड़ा है उसे हटाना होगा
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने
अहिल्या द्रौपदी सीता तारा मंदोदरी तथा । पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ।। का उल्लेख क्यों किया सुनीता विलियम्स एलन मस्क का उल्लेख क्यों हुआ श्री बालेश्वर जी का नाम क्यों आया गीतावली से आचार्य जी ने क्या उदाहरण दिया जानने के लिए सुनें