सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा। दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा॥
आतम अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा॥1॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 24 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३३४ वां* सार -संक्षेप
यह हमारा सौभाग्य है कि हनुमान जी, जिनका वरदहस्त सदैव हमारे ऊपर रहता है,की प्रेरणा से ये सदाचार वेलाएं हमें प्राप्त हो रही हैं ताकि हम जिज्ञासु सदाचारमय विचार ग्रहण कर सकें अपने विकार दूर कर सकें अपनी सोच सकारात्मक रख सकें उस यशस्विता का वरण कर सकें जिसके लिए हम परमात्मा की लीला के पात्र उसकी इस लीलाभूमि में संघर्ष करते रहते हैं,आत्मानुभव के सुख का सुंदर प्रकाश फैले ताकि संसार के मूल भेद रूपी भ्रम का नाश हो सके, हम उत्साहित प्रफुल्लित हो सकें, अविद्या के साथ विद्या को भी जान सकें, शक्ति की अनुभूति कर सकें, ऊलजुलूल खानपान से बच सकें
तुलसीदास जी ने विषम परिस्थितियों में जब दुष्ट अकबर का शासन था प्रेरणा देने वाली श्रीरामचरित मानस की रचना की आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम इस अद्भुत ग्रंथ का पाठ करें आज भी यह प्रासंगिक है आज भी परिस्थितियां विषम हैं इसके लिए हमें शक्तिबोध होना चाहिए और हमें आत्मविस्तार का प्रयास करना चाहिए संगठन को महत्त्वपूर्ण मानते हुए हम राष्ट्रभक्तों को संगठित रहना चाहिए
यह अविश्वास का अंधकार है आत्मदीप हो जाओ
युगचारण जागो कसो कमर फिर से भैरवी सुनाओ
(अपने दर्द दुलरा रहा हूं ४४वीं कविता)
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने किन भैया के घर भोजन की चर्चा की, कामायनी के पात्र श्रद्धा और मनु का उल्लेख क्यों किया, कल सम्पन्न हुए रामकथा -कार्यक्रम के विषय में क्या बताया जानने के लिए सुनें