प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 25 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३३५ वां* सार -संक्षेप
अद्भुत है यह वाचिक संपर्क जिसके माध्यम से आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित उद्बोधित करते हैं ताकि हम अपने विकार दूर कर सकें, सदाचारमय विचार ग्रहण कर सकें, अपनी अद्भुत ऋषि परम्परा पर आस्था रखते हुए सनातन धर्म के व्याख्याता और संरक्षक बन सकें , हम भटकने और व्याकुल होने से बच सकें,अपने भीतर यह आस्थावादिता उत्पन्न कर सकें कि परमात्मा हमारे भीतर स्थित है हमारे अन्दर शिवत्व और रामत्व जैसे अद्भुत गुण भरे हुए हैं जिनके माध्यम से हम शक्ति पराक्रम की अनुभूति करते हुए दुर्धर्ष समस्याओं को भी हल कर सकते हैं, परमात्मा हमें अच्छे और बुरे की पहचान वाली शक्ति दे सके, हमें स्मरण रहे कि अखंड भारत हमारा लक्ष्य है
तुलसीदास कृत श्रीरामचरित मानस
जिसमें
रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा॥
मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥1॥
श्री रघुनाथजी का उदार नाम है, जो अत्यन्त पावन है इस कथा में वेद,पुराणों का सार है, यह कल्याण का भवन है और अमंगलों को हरने वाला है, जिसे मां पार्वती सहित भगवान शिव सदा जपा करते हैं
एक ऐसा अद्भुत ग्रंथ है जिसमें यदि भाव टिक जाए तो हमें सारी समस्याओं का उत्तर मिल जाता है
भनिति मोरि सब गुन रहित बिस्व बिदित गुन एक।
सो बिचारि सुनिहहिं सुमति जिन्ह कें बिमल बिबेक॥9॥
तुलसीदास कहते हैं कि उनकी यह रचना सब गुणों से रहित है, इसमें बस, विश्वप्रसिद्ध एक गुण है। उसे विचारकर अच्छी बुद्धि वाले पुरुष, जिन्हें निर्मल ज्ञान प्राप्त है, इसको सुनेंगे l
आचार्य जी ने आस्था को विस्तार से बताया यह भी समझाया कि विश्वास और आस्था में क्या अन्तर है हम यह आस्था रखें कि जब भी हम संकटों में फंसेंगे हनुमान जी हमारी रक्षा अवश्य करेंगे
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रमोद जी भैया आकाश जी भैया ज्योति जी भैया आशु शुक्ल जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें