26.3.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 26 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३३६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 26 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३३६ वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार संप्रेषण हमें  अनाचार से बचाते हुए उत्साहित करते हैं,जाग्रत करते हैं ताकि हम,  जिन्हें जन्म से ही अनेक दैवीय वरदान प्राप्त हो जाते हैं  बाह्य आडम्बरों से बच सकें,क्षुद्र स्वार्थों से बचते हुए परमार्थ के कार्य कर सकें,शान्ति की स्थापना कर सकें,मनुष्योचित कार्य ही करने का संकल्प कर सकें, प्रेम और आत्मीयता का विस्तार कर सकें,भारत माता के प्रति आस्थावान् बन सकें,समाज में व्याप्त अंधकार और भयंकर कष्टदायक रोग के रूप में फैल रहे अविश्वास को दूर कर सकने की क्षमता ला सकें अपनों के साथ विश्वास का भाव विकसित कर सकें 


यह अविश्वास का अंधकार है आत्मदीप हो जाओ

युगचारण जागो कसो कमर फिर से भैरवी सुनाओ

(अपने दर्द दुलरा रहा हूं ४४वीं कविता)



हमारे कल्याण की कामना करने वाले आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम खाद्याखाद्य पर विशेष ध्यान दें अपना आहार शुद्ध रखें क्योंकि आहार के शुद्ध होने से अन्तःकरण की शुद्धि होती है, अन्तःकरण के शुद्ध होने से बुद्धि निश्छल होती है और बुद्धि के निर्मल होने से सब संशय और भ्रम जाते रहते हैं

आचार्य जी ने यह भी परामर्श दिया कि 

अपनी उलझनों को सुलझाने के लिए आत्मस्थ होने के लिए कुछ समय प्रतिदिन एकांत में रहने के लिए निकालें

साथ ही मानस के बालकांड के प्रथम दस दोहे नित्य पढ़ें 

और उन पर विचार करें

हमें हंस का भाव अपने भीतर लाना होगा क्योंकि 



संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥

 संत रूपी हंस दोष रूपी जल को छोड़कर गुण रूपी दूध को ही ग्रहण करते हैं



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुनीत जी के किस कार्यक्रम की चर्चा की जानने के लिए सुनें