27.3.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 27 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३३७ वां* सार -संक्षेप

 यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्।


स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः।।18.46।।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 27 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३३७ वां* सार -संक्षेप


हमें इस भाव में अवश्य रहना चाहिए कि जो भी यह दृश्यमान गतिशील, वैयक्तिक जगत् है-यह सबका सब ईश्वर के आवास के लिए है। हमें इन सबका त्याग द्वारा उपभोग करना चाहिए,किसी भी दूसरे की धन-सम्पत्ति पर ललचाई दृष्टि नहीं डालनी चाहिए

यही अध्यात्म है और जब कोई व्यक्ति अध्यात्म में गहरी रुचि दिखाता है और ध्यान, साधना या ईश्वर की भक्ति,  जिसमें अद्भुत शक्ति होती है,में लीन होता है तो वह अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझने लगता है। इस स्थिति में वह भौतिक संसार की अस्थिरता और असारता का अनुभव करता है।

उसके लिए संसारिक सुखों और भौतिक वस्तुओं की महत्ता कम होती जाती है। अध्यात्म में प्रवेश के समय संसार से मुक्ति ही ध्यानस्थता है

परमात्मतत्त्व की ओर आस्था ही अध्यात्म में प्रवेश है और संसार -तत्त्व की ओर व्यावहारिक जगत् में प्रवेश है 

भारतवर्ष में एक समय ऐसा आया जब अध्यात्म तत्त्व में अत्यधिक लिप्तता से हमें समाज और देश से प्रयोजन ही नहीं रहा हम एकांगी हो गए जिसका दुष्टों ने लाभ उठाया

इसी कारण हमें शौर्यप्रमंडित अध्यात्म की महत्ता को समझना चाहिए शौर्य पराक्रम बल की अनुभूति करनी चाहिए जिसके लिए हमें अपने शरीर पर भी ध्यान देना चाहिए उचित समय पर जागरण शयन आवश्यक है खाद्याखाद्य विवेक भी आवश्यक है

 संसार और सार दोनों में सामञ्जस्य की महती अपरिहार्यता है

मन बुद्धि शरीर में सामञ्जस्य अनिवार्य है अध्ययन स्वाध्याय लेखन राष्ट्र चिन्तन आवश्यक है 

कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।

एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने प्रेमानन्द जी की चर्चा क्यों की शौर्य का वास्तविक अर्थ क्या है संसार में शौर्य की अनुभूति क्या है जानने के लिए सुनें