प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 28 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३३८ वां* सार -संक्षेप
आचार्य जी नित्य हमें जो अध्यात्म के द्वार पर खड़े हैं उद्बोधित प्रबोधित उत्थित करते हैं ताकि इनका श्रवण कर हम अध्यात्म के भीतर प्रविष्ट होने का प्रयास कर सकें हमें आत्मबोध हो हम महापुरुषों के जीवन का अध्ययन कर उनके मार्ग पर चलें हम संस्कारवान्,शौर्यवान्, धैर्यवान्, तपस्वी, यशस्वी, राष्ट्र -भक्त,सनातन धर्मी मर्यादा का पालन करने वाले बनें
जब हम सांसारिकता में उलझकर कष्ट में रहें हमारा कोई वश नहीं चले तो हमें परमात्मा की शरण लेनी चाहिए निर्भरा भक्ति अर्थात् सब कुछ संचालित करने वाली शक्ति भगवान् के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव हमें अपने भीतर जाग्रत करना चाहिए विनय पत्रिका के ९१ वें पद में तुलसीदास जी कहते हैं
नाचत ही निसि-दिवस मर् यो।
तब ही ते न भयो हरि थिर जबतें जिव नाम धर् यो ॥ १ ॥
बहु बासना बिबिध कंचुकि भूषन लोभादि भर् यो।
चर अरु अचर गगन जल थलमें,कौन न स्वाँग कर् यो ॥ २ ॥
देव-दनुज,मुनि,नाग,मनुज नहिं जाँचत कोउ उबर् यो।
मेरो दुसह दरिद्र, दोष,दुख काहू तौ न हर् यो ॥ ३ ॥
थके नयन, पद, पानि, सुमति, बल, संग सकल बिछुर् यो।
अब रघुनाथ सरन आयो जन,भव,भय बिकल डर् यो ॥ ४ ॥
जेहि गुनतें बस होहु रीझि करि, सो मोहि सब बिसर् यो।
तुलसिदास निज भवन-द्वार प्रभु दीजै रहन पर् यो ॥ ५ ॥
नाचते-नाचते दिन-रात भटकता रहा, लेकिन जब जीव ने हरि का नाम लिया तब वह स्थिर हुआ।
अनेक वासनाओं, विविध आभूषणों लोभ आदि से भरा था। चराचर , आकाश, जल और धरती में सभी रूप अपनाए ।
देव, दानव, मुनि, नाग और मनुष्य - कोई भी मेरी दुर्दशा, गरीबी, दोष और दुःख हटा नहीं पाया।
मेरी आँखें, पैर, हाथ, बुद्धि, बल, सब कुछ थक गया है। अब मैं, रघुनाथ की शरण में आया हूँ, हे प्रभु, मेरे भव और भय को दूर करो।
हे प्रभु, जिस गुण से आप प्रसन्न होते हो, वह मुझे याद नहीं हे प्रभु, मुझे अपने घर के द्वार पर रहने की अनुमति दीजिए।
संसार को संसार की दृष्टि से देखते हुए स्वयं को स्वयं की दृष्टि से देखने का अभ्यास करें आत्मस्थ होने का प्रयास करें सारी व्याधियों के निराकरण के लिए आत्मस्थता अनिवार्य है अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन व्यायाम लेखन भी अनिवार्य है इस पर ध्यान दें
खानपान जागरण शयन व्यवहार पर ध्यान दें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रमेन्द्र जी भैया आशीष जोग जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें