29.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 29 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३३९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 29 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३३९ वां* सार -संक्षेप

अपनी अद्भुत यज्ञमयी संस्कृति,जिसने हमें न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, अपितु सामाजिक, मानसिक एवं पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी अत्यधिक शिक्षित किया है ,के हम याज्य इन सदाचार संप्रेषण रूपी यज्ञों जो हमारे भीतर के दोषों को शुद्ध करने, समाज के कल्याण की कामना करने, और अपने आत्म को परमात्म से संयुत करने का माध्यम है (यही कारण है कि यज्ञ भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बना हुआ है और यह आज भी हमारे जीवन में प्रासंगिक है) के भाव -धूम को अपने भीतर प्रविष्ट कराकर उत्साहित, आनन्दित, जाग्रत,ऊर्जस्वित,सतत सत्कर्म -रत हों, झंझाओं को झेलने की शक्ति प्राप्त करें, आत्मविश्वास प्राप्त करें, अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन में रत हों आचार्य जी का नित्य यही प्रयास रहता है


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।

की व्याख्या करते हुए आचार्य जी कह रहे हैं हम कर्म करते चलें बार बार फल की इच्छा न करें, धैर्य रखें, जय पराजय सफलता असफलता में समभाव रखें

हमें सदैव स्मरण रखना चाहिए कि हम अंशी के अंश हैं 

किन्तु संसार से बंधे हैं

प्रकृति इसका माध्यम है 

ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी॥1॥


सो मायाबस भयउ गोसाईं। बँध्यो कीर मरकट की नाईं॥

जड़ चेतनहि ग्रंथि परि गई। जदपि मृषा छूटत कठिनई॥2॥


ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।


मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति।।15.7।।


इस जीव लोक में जीव मेरा ही एक सनातन अंश है वह प्रकृति में स्थित हुआ (देहत्याग के समय) पाँचों इन्द्रियों तथा मन को अपनी ओर खींच लेता है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने स्फुट -पद का उल्लेख क्यों किया, लखनऊ में कौन सा कार्यक्रम होने जा रहा है, आचार्य रजनीश का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें