प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 4 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३१४ वां* सार -संक्षेप
हम हताश निराश न रहें और आनन्दार्णव में तिरें, हमारा मन मस्तिष्क व्यवस्थित रहे,हम भाव विचार के साथ क्रिया पर भी दृष्टि रखें और अपनी सोच को विस्तार देते हुए अधिक मात्रा में संकल्पबद्ध हों,राष्ट्रभक्त आत्मीय जनों के लिए हम आशा की किरण बनें, संगठित रहें, रामत्व की अनुभूति करें और संस्कारवान् बनें कंचन मृग की खोज में लगे आचार्य जी जिनके मन में है
सांझ उतर आयी मन की अभिलाष न पूरी है
कोई चन्द्रगुप्त गढ़ने की साध अधूरी है
इसके लिए सकारात्मक परिणामों की आशा करते हुए नित्य प्रयास करते हैं
हमारे भारतवर्ष की अनेक विशेषताएं है यहां की शिक्षा पद्धति तो ऐसी रही है कि हम विश्व गुरु ही हो गए, यह शिक्षा पद्धति हमें भावनात्मक रूप से शिक्षित करने वाली रही है इसने विद्या और अविद्या दोनों को महत्त्व दिया है
यह सिद्ध करती है कि हम अविनाशी हैं
कठोपनिषद् में धर्मराज यमराज द्वारा नचिकेता को यही शिक्षा दी जाती है कि यह शरीर और भौतिक संसार अस्थिर हैं, किन्तु आत्मा अविनाशी, अनश्वर और परमात्मा से संयुत है। यही हमारी वास्तविक पहचान है।
नायमात्मा प्रदीर्णेन लभ्यः। न मे धुना प्रवचनेन लभ्यः। यमः शाश्वतम्।
किन्तु
हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा
अरुणाचल की छवि बनी नयन मे धुँधली कंचन रेखा
पछुआ के इस कदर तपे झोंके अमराई में
कि झुलस झरे सब पात पात बगिया की खाई में
और हमारे ऊपर ऐसा आवरण चढ़ा कि धनार्जन में हम अपना सारा जीवन जुझा देते हैं
चाणक्यत्व की अनुभूति करने वाले आचार्य जी का प्रयास है कि हम इससे इतर सोचें परमार्थ की भावना को बलवती करते हुए देश और समाज के हित के कार्य करें
शौर्यप्रमंडित अध्यात्म की महत्ता को जानते हुए दुष्टों से सजग रहें और इसके लिए संगठित रहें हमारी भावनाएं आनन्दित रहें इसके लिए हम आत्मस्थ हों क्योंकि परमात्मा हमारे भीतर अवस्थित है अध्ययन स्वाध्याय लेखन प्राणायाम आदि पर ध्यान दें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया आशुतोष जी का नाम क्यों लिया १६/१७ लोग कहां आने के लिए तैयार हैं जानने के लिए सुनें