प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 31 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३४१ वां* सार -संक्षेप
आचार्य जी प्रतिदिन प्रयास करते हैं कि हम नित्य अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन आदि करें कर्ममय जीवन अपनाएं सत्कर्म परमात्मा को समर्पित करते चलें हम आत्मविश्वास से भर जाएं परमात्मा में हमारी आस्था हो
राष्ट्र के हम जाग्रत पुरोहित बनें
हमारा भारत देश जिसका सिद्धान्त है कि
न राज्यं न च राजासीत् न दण्ड्यो न च दाण्डिकः। धर्मेणैव प्रजा: सर्वा रक्षन्ति स्म परस्परम्
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हमारा सनातन धर्म अद्भुत है अद्वितीय है कतिपय कारणों से सनातन धर्म को *विदेशी आक्रमणकारियों* द्वारा नष्ट करने का प्रयास लगातार होता रहा और इसका दुष्प्रभाव हिंदू समाज और संस्कृति पर गहरा पड़ा हम भ्रमित हो गए हमारी श्री विलुप्त होने लगी वेद पुराण आदि को हम ढोंग मानने लगे
किन्तु हमारी संस्कृति हमारा सनातन धर्म इतने संकटों को झेलने के बाद भी नष्ट नहीं हो पाया क्योंकि
जब जब होई धरम की हानी, बाढ़हि असुर अधम अभिमानी। तब-तब धरि प्रभु विविध शरीरा, हरहि दयानिधि सज्जन पीरा।।”
अद्भुत है परमात्मा की लीला कि कोई न कोई महापुरुष किसी न किसी रूप में उत्पन्न होता रहा है
दुष्ट अकबर के शासनकाल में भी ऐसा ही हुआ जब तुलसीदास जी को लगा कि अकबर से पीड़ित हमारे राष्ट्रभक्त समाज को जाग्रत करने की आवश्यकता है
उनकी कृति श्रीरामचरित मानस एक अद्भुत ग्रंथ है इसमें कई स्थानों पर प्रेरक संदेश हैं
धुआँ देखि खरदूषन केरा। जाइ सुपनखाँ रावन प्रेरा॥
बोली बचन क्रोध करि भारी। देस कोस कै सुरति बिसारी॥3॥
खर-दूषण का विध्वंस देखकर शूर्पणखा ने जाकर रावण को भड़काया। वह बड़ा क्रोध करके वचन बोली- तूने देश और खजाने की सुधि ही भुला दी॥
करसि पान सोवसि दिनु राती। सुधि नहिं तव सिर पर आराती॥
राज नीति बिनु धन बिनु धर्मा। हरिहि समर्पे बिनु सतकर्मा॥4॥
बिद्या बिनु बिबेक उपजाएँ। श्रम फल पढ़ें किएँ अरु पाएँ॥
संग तें जती कुमंत्र ते राजा। मान ते ग्यान पान तें लाजा॥5॥
तू सुरापान करता है और दिन-रात पड़ा सोता रहता है। तुझे भान नहीं कि शत्रु तेरे सिर पर खड़ा है? नीति के बिना राज्य और धर्म के बिना धन प्राप्त करने से, भगवान को समर्पण किए बिना उत्तम कर्म करने से और विवेक उत्पन्न किए बिना विद्या पढ़ने से परिणाम में श्रम ही हाथ लगता है। विषयों के संग से संन्यासी, बुरी सलाह से राजा, मान से ज्ञान, मदिरा पान से लज्जा
प्रीति प्रनय बिनु मद ते गुनी। नासहिं बेगि नीति अस सुनी॥6॥
नम्रता के बिना प्रीति और मद से गुणवान शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं, इस प्रकार नीति मैंने सुनी है
छपिया और अक्षरधाम का क्या सम्बन्ध है श्री श्रीरविशङ्कर और झूले का क्या प्रसंग है भैया मुकेश जी ने कल कौन सा कार्यक्रम किया अपने सरौंहां में कल कौन सा कार्यक्रम हुआ जानने के लिए सुनें