1.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 1 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३४२ वां* सार -संक्षेप

 अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः |

 चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम् ||


जो व्यक्ति सुशील और विनम्र

होते हैं, बड़ों का सम्मान करते

हैं, वृद्ध व्यक्तियों की सेवा करते

हैं, उनकी आयु, विद्या, कीर्ति

और बल इन चारों में वृद्धि 

होती है।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  1 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३४२ वां* सार -संक्षेप


हनुमान जी की कृपा से प्राप्त ये सदाचार वेलाएं अद्भुत हैं और इनका उद्देश्य सुस्पष्ट है कि हम  जाग्रत हों उत्थित हों उत्साहित हों अपनी सोच सकारात्मक रखें,आत्मविश्वास से भर जाएं, विनम्र रहें, हम राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण अपने समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष करें,हम केवल बैठकर तत्वबोध ही न करते रहें अपितु शौर्य प्रमंडित आत्मबोध को विस्मृत न कर बिना रुके कर्मानुरागी बनें 

जैसा स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि जब तक इस देश का एक भी कुत्ता भूखा है मैं बार बार इस धरा पर जन्म लूं और कर्म करूं 

हम इन्हें मात्र सुनने तक ही सीमित न रखकर इनकी अनुभूति भी करें तो अधिक लाभ पहुंचेगा


जब हम इस सत्य को समझने लगते हैं कि हम शरीर नहीं हैं, अपितु आत्मा हैं, तो जीवन का दृष्टिकोण ही परिवर्तित हो जाता है। यह हमें यह सिखाता है कि हमें सांसारिक वस्तुओं और भौतिक वात्याचक्रों से इतर आत्मा के वास्तविक उद्देश्य की ओर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए


आचार्य जी ने अपनी पुस्तक अपने दर्द मैं दुलरा रहा हूं में छपी एक कविता सुनाई जिसमें दर्शन विचार चिन्तन अनुभव व्यवहार आदि बहुत कुछ है


बीत गया दिन शाम हुई आराम करो

*फिर से सूरज की किरणों का ध्यान करो*

....


लगा सूत का ढेर न चादर बुनी गई

तरह तरह की अनगिन बातें सुनी गईं

......


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि ज्योतिष को वेदों के छह अंगों (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष और छंद) में से एक माना जाता है यह वेदपुरुष का नेत्र है

एक young mechanic की चर्चा क्यों हुई  और एक sub inspector का भी उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें