आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु ।
बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च ।।
(कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र ३)
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 5 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३१५ वां* सार -संक्षेप
हमें संसार अत्यधिक ग्रस न ले साथ ही संसारी भाव से मुक्त होने के लिए हमारे लिए सद्संगति आवश्यक है जैसे हम महापुरुषों की सद्संगति करें और कर्मक्षेत्र में प्रवृत्त करने की एक अद्भुत विधा के रूप में अंकित ये हितकारी सदाचार संप्रेषण सद्संगति का एक अच्छा उदाहरण हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए हम सद्ग्रंथों जैसे वेद ब्राह्मण आरण्यक उपनिषद् गीता मानस का अध्ययन करें तो हमें लाभ प्राप्त होगा
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा ll ६/१७ ll
उस व्यक्ति के लिए योग दु:ख का नाश करने वाला होता है, जो युक्त आहार और युक्त ही विहार अर्थात् जीवन अच्छी तरह व्यतीत हो रहा है जैसे अच्छी संगति है अच्छी जगह रह रहे हैं प्राणायाम व्यायाम आदि कर रहे हैं अध्ययन स्वाध्याय पर ध्यान है, करता है एवं जो जीवन निर्वाह के लिए यथायोग्य चेष्टाएं करता है साथ ही परिमित शयन और जागरण करता है। अति सर्वत्र वर्जयेत का सूत्र सिद्धान्त याद करते हुए व्यवस्थित जीवन जीता है उसके लिए योग दुःखनाशक होता है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने
भैया अक्षय जी २००८,भैया नीरज कुमार जी १९८१,भैया आशीष जोग जी १९८३ का नाम क्यों लिया
पूर्व प्रधानाचार्य श्रद्धेय ठाकुर जी के अभ्यास में क्या था, श्रद्धेय शर्मा से संबन्धित क्या प्रसंग था दिव्यकीर्ति कौन हैं जानने के लिए सुनें