6.3.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 6 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३१६ वां* सार -संक्षेप

 यह अविश्वास का अंधकार है आत्मदीप हो जाओ

युगचारण जागो कसो कमर फिर से भैरवी सुनाओ

(अपने दर्द दुलरा रहा हूं ४४वीं कविता)

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 6 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३१६ वां* सार -संक्षेप

आचार्य जी ने जो भी शक्ति बुद्धि विचार वैभव सार असार रामत्व कृष्णत्व अर्जित किया है उसे यदि हम ग्रहण कर लें तो निश्चित रूप से हमें लाभ पहुंचेगा 

(मैंने ही तुमको विषय मानकर गीत लिखे)

चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय आदि के द्वारा हम विघ्न भाव  मानसिक असंतुलन अपने भीतर व्याप्त कर्दम दूर कर सकते हैं और इसमें श्रीरामचरित मानस से भी हमें बड़ा सहारा मिलता है 

हमें यदि कोई अच्छा साथी नहीं दिख रहा तो सद्ग्रंथों का हम आश्रय लें लेखन का सहारा लें तो संकट दूर होंगे 

विघ्नों को गले लगाते हैं।

        काँटों में राह बनाते हैं।।

है कौन विघ्न ऐसा जग में

टिक सके आदमी के मग में,

खम ठोंक ठेलता है जब नर

पर्वत के जाते पाँव उखड़,

      मानव जब जोर लगाता है         पत्थर पानी बन जाता है।।

मन बहुत चंचल होता है 

अर्जुन भी चञ्चल मन के निग्रह का उपाय भगवान् से पूछते हैं 


चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्।


तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।।6.34।।


तो भगवान् उन्हें उपाय बताते हैं 

भारतवर्ष की छायातले  अनेक विशिष्ट महापुरुषों ने काम किया है 

हमें जब भी ऐसा वैशिष्ट्य दिखे 

यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।


तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम्।।10.41।।

तो समझ लें भगवान् का अंश विद्यमान है 


....करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥

तब तब प्रभु धरि मनुज सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥

हमारी आर्ष परम्परा जिसे हमने भ्रम में भुला दिया विश्वासपूर्वक कहती है कि माया से आवेष्टित होकर मनुष्य शरीर धारण कर परमात्मा कुछ न कुछ कमाल करता रहा है 

हम उसी परम्परा के मनुष्य हैं हमें अपने मनुष्यत्व की अनुभूति कर अपनी असीमित क्षमताओं को पहचानना चाहिए  अपने कर्तव्य का पालन करें  वैराग्यपूर्वक अच्छे कार्यों विचारों का अभ्यास करें 

संगठित रहें निर्विकार रूप से जीवन जीने का अभ्यास करें धीरज न त्यागें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने उन्नाव के विद्यालय की चर्चा क्यों की भैया पंकज जी भैया आशीष जोग जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें