प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 7 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३१७ वां* सार -संक्षेप
इन आकर्षक सदाचार संप्रेषणों,जिनमें असार के साथ सार को अत्यन्त सरल भाषा में समझाया जाता है ,को सुनने के लिए हम प्रतिदिन लालायित रहते हैं इनसे हमें बहुत कुछ प्राप्त हो सकता है बस हमें विश्वास करना होगा ये हमारे दुर्गुणों को दूर करने में भी सहायक हैं
आत्म का विस्तार जब आनन्दार्णव में हिलोरे लेने लगता है
तो इसकी अनुभूति और अभिव्यक्ति बड़ी अद्भुत होती है
मैंने तुमको ही विषय मानकर गीत लिखे
मनमन्दिर की तुम ही उपासना मूरत थे
साधना साध्य की तुम ही थे तब एकमेव
सचमुच में अनुपम दिव्य समय की सूरत थे
तुममें ही देखा मैंने भारत का भविष्य
भारतमाता की सेवा के तुम उपादान
शिक्षा पद्धतियों की विधि और व्यवस्था थे...
और उस अभिव्यक्ति में अधूरापन संसार का सत्य है इस अधूरेपन को पूर्ण करने के लिए व्यक्ति का व्यक्तित्व है उसका आत्मबोध है
व्यक्ति उस अधूरेपन को पूरा करने के लिए प्रयत्नशील रहता है इसी कारण भावपूर्ण अभिव्यक्ति करते हुए विवेकानन्द ने कहा था कि वे बार बार इस कारण जन्म लेना चाहते हैं कि देश का एक कुत्ता भी भूखा न रह जाए इस नाम रूपात्मक जगत् में नाम और रूप आनन्द का अनुभव कराते हैं
हमने भारतवर्ष में जन्म लिया है इसके सच्चे सपूत के रूप में हमें अपने कर्तव्य का बोध होना चाहिए राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित के रूप में शौर्य पराक्रम पौरुष की अनुभूति करते हुए हम अपनी भूमिका पहचानें
इस युग विलास में हम उल्लास भरें
हम मनुष्य होने के कारण समस्याओं का समाधान करने में सक्षम हैं रुदन से बचते हुए अंधकार को चुनौती देते हुए उत्साहपूर्वक राष्ट्र हित में अपने लक्ष्य बनाएं क्योंकि हम ही इस राष्ट्र के लिए उम्मीद की किरण हैं
हमें पतित करने वाले भोगों से हम अपने को बचाएं
चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन में रत हों संगठन की महत्ता को पहचानें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कामायनी पर आपत्ति का उल्लेख क्यों किया दशरथ माझी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें