मांधाता स महिपति: कृत युगालंकार भूतो गत:
सेतुर्येन महोदधौ विरचित: वासौदशास्यांतक:
अन्येचापि युधिष्ठिर प्रभुतयो याता दिवं भूपते
नैकेनापि सम गता वसुमती मान्ये त्वया यास्यति....
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 2 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३४३ वां* सार -संक्षेप
निर्भरा भक्ति के आदर्श हमारे इष्ट देवता हनुमान जी की कृपा छाया से सांसारिक योग सदृश ये सदाचार संप्रेषण हमें जाग्रत उत्थित उत्साहित प्रेरित करने के लिए नित्य प्राप्त हो रहे हैं हमें संसार से मुक्त रहते हुए बुद्धिवादिता से दूर रहते हुए इन्हें सुनकर इनसे लाभ उठाना चाहिए हमें अपने शुभ भाव जगत् जिसमें निर्भरा भक्ति प्रविष्ट हो को जाग्रत करना चाहिए क्योंकि सुप्त शुष्क भाव जगत् हमें कष्ट ही प्रदान करता है,व्याधियां देता है
यह सत्य है कि
भाव का विस्तार सीमातीत जब हो जाएगा,
और अपना स्वत्व सबके साथ जब मिल जाएगा,
खिल उठेगी प्रकृति पूरे विश्व की आनन्द से,
और बंधनमुक्त बिचरेंगे सभी स्वच्छन्द से ।
गीत गाएगा गगन धरती भरेगी तालस्वर,
धुंध सब छट जाएगा होंगी दिशाएँ भास्वर,
*अतः हे परमात्म प्रतिनिधि भाव को विस्तार दो*,
*भाव की पूजा करो शुभ भाव को विस्तार दो।*
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम अपने जीवन में संतुलन भी बनाए रखें घर परिवार समाज देश विश्व से हमारा सामञ्जस्य कैसा हो इसका हमें भान होना चाहिए
हमारी संस्कृति हमारा धर्म हमारी परम्पराएं हमारे ग्रंथ अद्भुत हैं स्वयं हमें इन पर विश्वास रखते हुए भ्रमित नई पीढ़ी को इनके वैशिष्ट्य से अवगत कराना चाहिए जिससे वह स्वावलम्बी बन सके भारतीयता के प्रति उसकी आस्था बन सके अपनी भाषा अपनी संस्कृति आदि पर वह गर्व कर सके
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मुञ्ज की चर्चा क्यों की चून क्या है भैया हरीन्द्र जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें