प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 10 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३५१ वां* सार -संक्षेप
*"आज भी दैवासुर संग्राम चल रहा है"* सत् असत् सदैव रहेगा इस तथ्य को झुठलाया नहीं जा सकता अनेक उपद्रव चल रहे हैं जो भारत राष्ट्र को अस्थिर करने का प्रयास करते हैं जिसके लिए उपद्रवी तत्त्व संगठित रहते हैं शक्ति का भी संचय करते हैं ये तथ्य हमें निराश करते हैं जब उन उपद्रवों को शमित करने के लिए कोई आगे आ जाता है तो अच्छा लगता है
इस तरह के संघर्षों में हम राष्ट्रभक्तों के निर्णय और कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं,हमें उचित दिशा में पग बढ़ाने के लिए उच्चतम गुणों सद्संगति अध्ययन स्वाध्याय निर्भरा भक्ति को अपनाना चाहिए। हमें भी संगठित रहने का प्रयास करना चाहिए
सात्विक संगठनों का भी साथ लेना चाहिए और शौर्य शक्ति पराक्रम की अनुभूति करनी चाहिए असत् का त्याग करना चाहिए और सत् को ग्रहण करना चाहिए अपने विकारों को सद्विचारों द्वारा दबाने का प्रयास करना चाहिए यह संतत्व तभी हमारे भीतर आ सकता है जब हम अपने शरीर का ध्यान रखते हुए
अपनी प्राणिक शक्तियों को आनन्दित करने का प्रयास करेंगे
संसार में इस समय भी विभूतिमत्ता का प्राचुर्य है
जो कोई भी विभूतियुक्त, कान्तियुक्त अथवा शक्तियुक्त वस्तु या प्राणी है, वह परमात्मा के तेज के अंश से ही उत्पन्न है
हमें उस विभूतिमत्ता को पाने की पात्रता उत्पन्न करनी होगी और यह ईश्वर की कृपा से ही संभव है हमें इस पर विश्वास करना चाहिए यह विश्वास हमें उलझनों से भी बचाएगा और शक्ति भी प्रदान करेगा
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने गीता के बारहवें अध्याय के किन छंदों का उल्लेख किया, प्रेमानन्द की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें