11.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 11 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३५२ वां* सार -संक्षेप

 काम धाम नाम का जहान में प्रपंच मंच 

नायक अनेक नाम रूप के बिराजे हैं

सभी निज प्रकृति प्रवृत्ति शक्ति बुद्धि साथ 

पूरी दमदारी के समेत साज साजे हैं। 

दर्शक बना हुआ विधाता बहु रूप धार 

अभिनय सभी के देख फलहु नवाजे हैं

वाह रे संसार तेरी महिमा अपार, तेरा 

पाए हैं सुपार सिर्फ कोइ बाजे बाजे हैं l


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 11 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३५२ वां* सार -संक्षेप



जब हम अपने जीवन के व्यस्त कार्यक्रम से थोड़ा समय निकालकर आध्यात्मिक चिंतन करते हैं, तो इससे हमारे मन में शांति आती है।

मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः


 सांसारिक जीवन के तनाव और चिंता को कम करने के लिए हमें अपने भीतर की शांति को अनुभव करने की आवश्यकता है। आध्यात्मिक चिंतन इस शांति का मार्ग है, जो हमें जीवन के तनावपूर्ण क्षणों से उबरने में सहायता प्रदान करता है तो आइये प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में 


वर्तमान  तथाकथित शिक्षा प्रणाली मुख्य रूप से प्रतिस्पर्धा, लोभ और मोह पर आधारित है। यह भय और भ्रम का वातावरण बना रही है दृष्टि दूषित कर रही है 

छात्रों को मुख्य रूप से यह सिखाया जाता है कि वे अच्छे अंक प्राप्त करें और एक अच्छी नौकरी प्राप्त करें, जिससे समाज में प्रतिष्ठा और भौतिक सुख-सुविधाएँ मिलें। इस प्रकार की शिक्षा से अधिकतर व्यक्ति अपना ध्यान नौकरी और कमाई पर केंद्रित करते हैं और इसमें गहन आत्मा की शांति, आत्मज्ञान, और सामाजिक योगदान के बारे में विचार कम होता है।

हमें इस शिक्षा से दूर होकर आत्मबोधोत्सव को मनाने की आवश्यकता है

मैं कौन हूं मैं कहां से आया हूं मेरा क्या कर्तव्य है 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 


हम चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन में रत हों शौर्य प्रमंडित अध्यात्म में रत हों आत्मबोधोत्सव सिखाने वाली हमारी आर्ष परम्परा अद्भुत रही है भारत देश ही अद्भुत है हम इसी अद्भुतता पर न्यौछावर होने का प्रयास करें 

हमारी सनातन शिक्षा आध्यात्मिक उन्नति और समाज की भलाई पर भी केंद्रित थी । हमें अपनी सनातन शिक्षा के उच्चतर आदर्शों की ओर लौटने की आवश्यकता है, ताकि हम एक संतुलित, मानसिक रूप से स्वस्थ और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध  व्यक्ति और समाज का निर्माण कर सकें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हमीरपुर की कौन सी घटना बताई जिसमें डायरी पर कुल्हाड़ी लग गई थी,भैया राघवेन्द्र प्रताप सिंह जी कहां बैठक करना चाहते हैं, ओरछा का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें