9.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 9 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३५० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 9 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३५० वां* सार -संक्षेप




जब समय पर हमारी वाणी उद्भूत हो जाए तो वह कल्याणकारी वाणी हो जाती है जैसी वाणी भगवान् कृष्ण की उद्भूत हुई 

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को विषम परिस्थितियों में गीता का उपदेश दिया, ताकि वह अपने कर्तव्य को समझे और अपने संकोच त्याग संघर्ष करे। गीता में दी गई शिक्षा न केवल अर्जुन के लिए, अपितु समस्त मानवता के लिए अमूल्य मार्गदर्शन है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में संकटों का सामना करते समय, गीता के उपदेशों से हमें *सहनशीलता*, *कर्तव्य*, और *धर्म* की दिशा में उचित निर्णय लेने की प्रेरणा मिलती है।


गीता का उपदेश महाभारत के भीष्म पर्व में हुआ था, जब कुरुक्षेत्र  की रणभूमि पर युद्ध प्रारम्भ होने वाला था। इस समय अर्जुन अत्यधिक भ्रमित और मानसिक संकट में थे। यह वह विषम स्थिति थी, जिसमें अर्जुन ने युद्ध करने से मना कर दिया और भगवान श्री कृष्ण से मार्गदर्शन की प्रार्थना की।

गीता के दूसरे अध्याय में 

भगवान् कृष्ण कहते हैं जिस काल में  कर्मयोगी इन्द्रियों के विषयों से इन्द्रियों को हटा लेता है, उस काल में उसकी बुद्धि प्रतिष्ठित हो जाती है

विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः।


रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते।।2.59।।


निराहारी अर्थात् इन्द्रियों को विषयों से हटाने वाले मनुष्य के भी विषय तो निवृत्त हो जाते हैं, किन्तु रस निवृत्त नहीं होता। परन्तु  स्थितप्रज्ञ मनुष्य का तो रस भी परमात्मतत्त्व का अनुभव होने से निवृत्त हो जाता है।


संयम का प्रयत्न करते हुए बुद्धिमान  पुरुष के भी मन को ये इन्द्रियां बलपूर्वक हर लेती हैं 

कर्मयोगी साधक उन सम्पूर्ण इन्द्रियों को वश में करके मेरे परायण होकर बैठे  क्योंकि जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं, उसकी बुद्धि प्रतिष्ठित है।

और विषयों का चिन्तन करने वाले पुरुष की उसमें आसक्ति हो जाती है आसक्ति से इच्छा और इच्छा से क्रोध उत्पन्न होता है।।

हमें इस गीता के ज्ञान का अभ्यास करना चाहिए हम प्रतिदिन कुछ ऐसे क्षण निकालें जिनमें हम इस अभ्यास का प्रयास करें भगवान् के प्रति समर्पण का भाव रखें 

भारत मां के प्रति भी समर्पित होवें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हमीरपुर की किस घटना की चर्चा की जिसमें भौतिकी के अध्यापक श्री जयवीर सिंह जी गौतम की केतली टूट गई थी भैया आशीष जोग जी का  उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

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