"युगभारती" माँ भारती की आरती का एक स्वर है ,
और हनुमत्कृपा का है यह प्रसाद ,अमूल्य वर है
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 13 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१३५४ वां* सार -संक्षेप
सनातन धर्म अर्थात् परमात्म धर्म अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है जिसमें रम जाना भगवान् की कृपा से संभव है
*"सनातन"* का अर्थ होता है — *अनादि, अनंत, शाश्वत*, जो न कभी उत्पन्न हुआ और न ही नष्ट हो सकता है।
*"धर्म"* का अर्थ है — *कर्तव्य*
सनातन धर्म का मूल आधार *परमात्मा* है — वह परम सत्य जो सभी में व्याप्त है
ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ॥
इस अत्यन्त गतिशील क्षरणशील जगत् में जो भी यह दृश्यमान गतिशील, वैयक्तिक जगत् है-यह सारा ईश्वर के आवास के लिए है। इस सबका त्यागपूर्वक उपभोग करना चाहिए किसी भी दूसरे की धन-सम्पत्ति पर ललचाई दृष्टि नहीं डालनी चाहिए
हमें लोभ लाभ से मुक्त होकर शास्त्र -सम्मत कार्यों को करते हुए यशस्वी तपस्वी जयस्वी बनते हुए १०० वर्ष जीने की इच्छा करनी चाहिए
इन सूत्र सिद्धान्तों पर हमें एकान्त में मनन करने का प्रयास करना चाहिए
गौतम व्यास कपिल याज्ञवल्क्य आदि शक्तिसम्पन्न महापुरुषों की एक लम्बी शृङ्खला है जिन्हें हम ठीक से जान भी नहीं पाए क्योंकि हमारी शिक्षा दूषित रही क्योंकि हम शरीर बने रहे आत्म से दूर रहे मनुष्यत्व से दूर रहे
इस कारण हमें अपने भीतर प्रवेश करने की आवश्यकता है अध्ययन करें तो *स्वाध्याय अवश्य करें सद्विचारों को ग्रहण कर कर्मानुरागी बनें*
जो कहें उसे करें
*"कीर्ति यस्य स जीवति"*
*जिसकी कीर्ति (यश, यशस्विता, शुभ प्रसिद्धि) जीवित रहती है, वही वास्तव में जीवित होता है केवल शरीर से जीवित रहना ही जीवन नहीं है, बल्कि उत्तम कर्मों, सदाचार, सेवा, और सच्चे मूल्यों के आधार पर जो कीर्ति अर्जित करता है वही व्यक्ति सच्चे अर्थों में अमर बनता है।*
*"कर्म ऐसे करें कि मृत्यु के बाद भी लोग नाम से जीवित रखें ।"*
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने औरास की चर्चा क्यों की आज सायं आचार्य जी का उद्बोधन किस विषय पर आधारित है जानने के लिए सुनें