15.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 15 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३५६ वां* सार -संक्षेप

 राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी॥

रिषि हित राम सुकेतुसुता की। सहित सेन सुत कीन्हि बिबाकी॥

सहित दोष दु:ख दास दुरासा। दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा॥

भंजेउ राम आपु भव चापू। भव भय भंजन नाम प्रतापू॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 15 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३५६ वां* सार -संक्षेप

इन सदाचार वेलाओं का उद्देश्य है कि हम उत्साहित आनन्दित हों *सकारात्मक सोच* रखें अपने सद्ग्रंथों का अध्ययन करें जो हमें शक्ति की अनुभूति कराने में सक्षम हैं, संसार के भावपक्ष की शक्ति की अनुभूति करें, संतत्व का अनुभव करें *आत्मबोधोत्सव* मनाएं 


गोस्वामी तुलसीदास  जिस समय मानस जिसने उस समय राष्ट्रभक्त समाज का बहुत कल्याण किया की रचना कर रहे थे उस समय निर्गुण भक्ति का विस्तार था

निर्गुण भक्ति अर्थात् *ईश्वर, जो निराकार, निर्गुण, निरविकारी है,की भक्ति जो सरल नहीं है, क्योंकि यह रूप, गुण, लीला, और संबंध* से रहित होती है। इसीलिए इसे *अत्यन्त गूढ़, दार्शनिक और कठिन मार्ग* माना गया है।

इसके विपरीत सगुण भक्ति सरल है

भगवान् राम 


राम भगत हित नर तनु धारी। सहि संकट किए साधु सुखारी॥

नामु सप्रेम जपत अनयासा। भगत होहिं मुद मंगल बासा॥


और भगवान् कृष्ण जो सगुण रूप में हमारे सामने आकर अपने आचरण अपने कार्य व्यवहार और अपनी लीलाओं से विषम परिस्थितियों को नियन्त्रित कर हमें भी उसी तरह के आचरण कार्य व्यवहार की प्रेरणा देते हैं में हमारा भक्त समाज बहुत रमा


निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार।

कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार॥ 23॥

 निर्गुण से नाम का प्रभाव अत्यंत बड़ा है। अब अपने विचार के अनुसार कहता हूँ, कि राम नाम राम से भी बड़ा है॥ 23॥


*"राम से बड़ा राम का नाम"* — इसका अर्थ है कि *ईश्वर से भी अधिक प्रभावशाली, दिव्य और कल्याणकारी उनके नाम का स्मरण है।*

नामु राम को कलपतरु, कर जो चित चढ़ि धीर।  

   राम सों अधिक राम कर नाम, बिदित सबु संत कबीर॥  

   (राम का नाम कल्पवृक्ष के समान है। संत कबीर भी कहते हैं कि राम से अधिक प्रभावशाली उनका नाम है।)


*राम नाम के पाथरै, तरे सकल संसार।*


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने *ओरछा* में होने वाले संभावित वार्षिक अधिवेशन की चर्चा की 

*भैया राघवेन्द्र प्रताप* *जी* का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया, यक्ष की कन्या कौन थी  युगभारती से समाज को संबल कैसे मिल सकता है जानने के लिए सुनें