16.4.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 16 अप्रैल 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३५७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 16 अप्रैल 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३५७ वां* सार -संक्षेप

इन सदाचार वेलाओं का श्रवण हम नियमित रूप से करें ताकि हमें *आत्मबोध* का अनुभव हो सके 

हमें संकटों में बल उत्साह मिल सके 

हम *बाह्य आडंबरों* से प्रभावित न हो सकें और अपने विचार विमल रख सकें 

संसार का चक्र अत्यन्त अद्भुत है जिसमें हर मनुष्य की अलग अलग भूमिका है हमें अपनी भूमिका को पहचानकर उसका परिपालन समुचित प्रकार से  मनोयोगपूर्वक करना चाहिए ऐसा करने पर निश्चित रूप से हम प्रशंसा के पात्र बनेंगे यशस्वी बनेंगे जैसे पिता के रूप में यदि भूमिका है तो उसी के अनुसार कार्य करें

*राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित के रूप में यदि भूमिका है* तो उसका भी ध्यान देना होगा   राष्ट्र के प्रति बैर रखने वाले दुष्टों की उपेक्षा भी करनी होगी और उस भूमिका को निभाने में आए अवरोधों  से हम भ्रमित और भयभीत नहीं होंगे यह निश्चय करना होगा 


जिस प्रकार भगवान् राम अपने लक्ष्य में आने वाले अवरोधों से भयभीत नहीं हुए 

श्रीरामचरित मानस ग्रंथ इसी कारण महत्त्वपूर्ण हो जाता है  यह एक अद्भुत ग्रंथ है हमें इसका बार बार अध्ययन करना चाहिए यह निश्चित रूप से हमारी समस्याओं का समाधान प्रदान कर देता है आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम इसके *बालकांड के ३५ वें दोहे से ४३ वें दोहे* के बीच का भाग अवश्य देखें जिसमें रामकथा को प्रारम्भ करने का कारण और कथा का स्वरूप पता चलेगा

मैं पुनि निज गुर सन सुनी कथा सो सूकरखेत।

समुझी नहिं तसि बालपन तब अति रहेउँ अचेत॥ 30(क)॥


जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें। तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें॥

निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी॥


जम गन मुहँ मसि जग जमुना सी। जीवन मुकुति हेतु जनु कासी॥

रामहि प्रिय पावनि तुलसी सी। तुलसिदास हित हियँ हुलसी सी॥


"सुठि सुंदर संवाद वर बिरचे बुद्धि बिचारि।  

तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि॥"


इस कथा में बुद्धि से विचारकर जो चार अत्यन्त सुंदर और उत्तम संवाद (कागभुशुण्डि-गरुड़, शिव-पार्वती, याज्ञवल्क्य-भरद्वाज और तुलसीदास और हम सब ) रचे गए हैं, वही इस पवित्र और सुंदर सरोवर के चार मनोहर घाट हैं। 

चार मनोहर घाटों का विवरण:


1. *कागभुशुण्डि और गरुड़ संवाद*: यह संवाद पक्षियों के दृष्टिकोण से जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझाता है।

2. *शिव और पार्वती संवाद*: यह संवाद भगवान शिव और देवी पार्वती के बीच की गहन चर्चा को दर्शाता है।

3. *याज्ञवल्क्य और भरद्वाज संवाद*: यह संवाद दो महान ऋषियों के बीच ज्ञान और भक्ति की गहरी बातें साझा करता है।

4. *तुलसीदास और हम लोगों के बीच का संवाद*: यह संवाद गोस्वामी तुलसीदास जी और हमारे बीच रामकथा के महत्व और भक्ति के विषय में चर्चा करता है।


इन चार संवादों को "चार मनोहर घाट" के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो रामकथा के पवित्र सरोवर में स्नान करने के लिए उपयुक्त स्थानों के समान हैं।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने लपा की चर्चा क्यों की भैया सिद्धनाथ जी और भैया आदर्श पुरवार जी का उल्लेख क्यों किया शब्द ब्रह्म कैसे है जानने के लिए सुनें